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________________ तीर्थंकर [ २९ महान देवों को मोक्ष का लाभ मिलता है । शची का भाग्य सचमुच में अदभुत है, कारण स्त्रीलिङ्ग छेदकर वह शीघ्र निर्वाण को प्राप्त करती है । जिनेन्द्र-भगवान की भक्ति का प्रत्यक्ष उदाहरण इन्द्राणी है । देवियों का कार्य माता की सेवा में तत्पर श्री आदि देवियों ने क्या कार्य किया, इसे महाकवि जिनसेन इस प्रकार कहते हैं ___ श्री-हाँध तिश्च कीतिश्च बुद्धि लक्ष्म्यौ च देवताः । श्रियं लज्जां च धैर्य च स्तुति-बोधं च वैभवम् ॥१२--१६४॥ श्री देवी ने माता में श्री अर्थात् शोभा की वृद्धि की। ह्री देवी ने ह्री अर्थात् लज्जा की धृति, देवी ने धैर्य की, कीर्ति देवी ने स्तुति की, बुद्धि देवी ने ज्ञान की तथा लक्ष्मीदेवी ने विभूति की वृद्धि की। माता के शरीर में गर्भवृद्धि का बाह्य चिन्ह न देखकर प्रभु के पिता के शंकित मन को इससे शान्ति मिलती थी, कि जिनमाता की तीव्र अभिलाषा त्रिभवन के उद्धार रूप दोहला में व्यक्त हुआ करती थी। मुनिसुव्रत काव्य में लिखा है :गर्भस्य लिगं परमाणुकल्पमप्येतदंगष्वनवेक्ष्य रक्षी। जगतत्रयोद्धारण-दोहदेन परं नराणां बुबुधे ससत्वां ॥४-६॥ भगवान के पिता ने जिनेन्द्रजननी के शरीर में परमाणुप्रमाण भी गर्भ के चिन्ह न देखकर केवल जगत्त्रय के उद्धाररूप दोहला से उसे गर्भवती समझा। इस कथन से जिनेन्द्रजननी की शरीर-स्थिति सम्बन्धी परिस्थिति का ज्ञान होता है, वैसे भगवान् की गर्भकल्याणक सम्बन्धी अपूर्व सामग्री को देखकर सभी जीव प्रभु के गर्भावतरण को भली प्रकार जानते थे और उनके जन्म-महोत्सव देखने की ममता से एकएक क्षण को ध्यानपूर्वक गिना करते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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