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तीर्थकर संख्यातगुणे हैं । मति-श्रुत तथा अवधिज्ञान से सिद्ध उनसे भी संख्यात गुणे हैं । इससे यह ज्ञात होता है कि मोक्ष जाने वाली संयमी आत्मा मति-श्रुतज्ञान युगल के साथ अवधिज्ञानावरण का भी क्षयोपशम प्राप्त करती है । राजवातिक में लिखा है--"सर्वस्तोकाः मति-श्रुतमनःपर्ययसिद्धाः मतिश्रुतज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । मतिश्रुतावधिज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः" (पृष्ठ ३६७, अध्याय १०-१०)
जीवों की सामर्थ्य के भेद से कोई कोई अन्योपदश द्वारा प्रतिबुद्ध हो मुक्त होते हैं । कोई-कोई स्वयं सिद्धिपद के स्वामी बनते हैं। अकलंकस्वामी ने कहा है-केचित् प्रत्येकबुद्धसिद्धाः, परोपदेशमनपेक्ष्य स्वशक्त्यैवाविर्भूतज्ञानातिशयाः । अपरे बोधितबुद्ध-सिद्धाः, परोपदेशपूर्वकज्ञानप्रकर्षास्कंदिनः" (पृष्ठ ३६६)--कोई तो प्रत्येक बुद्ध-सिद्ध हैं, क्योंकि उन्होंने परोपदेश के बिना अपनी शक्ति के द्वारा ज्ञानातिशय को प्राप्त किया है। अन्य बोधितबुद्ध-सिद्ध कहे गए हैं, वे परोपदेशपूर्वक ज्ञान की उत्कृष्टता को प्राप्त करते हैं। इस अपेक्षा से तीर्थकर भगवान 'प्रत्येकबुद्ध सिद्ध' कहे जावेंगे ।
परमार्थ-दृष्टि
इस प्रकार विविध दृष्टियों से सिद्ध भगवान के विषय में परमागम में प्रकाश डाला गया है । परमार्थतः सब सिद्ध समानरूप से स्वभावरूप परिणत हैं। उनका यथार्थ बोध न मिलने से एकान्त पक्षवालों ने भ्रान्त धारणाएँ बना ली हैं। .
सिद्ध भगवान के विषय में विविध अपरमार्थ विचारों का निराकरण करते हुए सिद्धान्त चक्रवर्ती प्राचार्य नेमिचन्द्र कहते हैं--
अट्ठविहकम्मवियला सीवी भूदा णिरंजणा णिच्चा। अट्ठगुणा किदकिच्चा लोयग्ग-णिवासिणो सिद्धा ॥गो जी० ६८॥
वे सिद्ध भगवान ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों से रहित हैं, अतएव वे सदाशिव मत की मान्यता के अनुसार सदा से मुक्त अवस्था संपन्न
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