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________________ ३०६ ] तीर्थकर संख्यातगुणे हैं । मति-श्रुत तथा अवधिज्ञान से सिद्ध उनसे भी संख्यात गुणे हैं । इससे यह ज्ञात होता है कि मोक्ष जाने वाली संयमी आत्मा मति-श्रुतज्ञान युगल के साथ अवधिज्ञानावरण का भी क्षयोपशम प्राप्त करती है । राजवातिक में लिखा है--"सर्वस्तोकाः मति-श्रुतमनःपर्ययसिद्धाः मतिश्रुतज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । मतिश्रुतावधिज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः" (पृष्ठ ३६७, अध्याय १०-१०) जीवों की सामर्थ्य के भेद से कोई कोई अन्योपदश द्वारा प्रतिबुद्ध हो मुक्त होते हैं । कोई-कोई स्वयं सिद्धिपद के स्वामी बनते हैं। अकलंकस्वामी ने कहा है-केचित् प्रत्येकबुद्धसिद्धाः, परोपदेशमनपेक्ष्य स्वशक्त्यैवाविर्भूतज्ञानातिशयाः । अपरे बोधितबुद्ध-सिद्धाः, परोपदेशपूर्वकज्ञानप्रकर्षास्कंदिनः" (पृष्ठ ३६६)--कोई तो प्रत्येक बुद्ध-सिद्ध हैं, क्योंकि उन्होंने परोपदेश के बिना अपनी शक्ति के द्वारा ज्ञानातिशय को प्राप्त किया है। अन्य बोधितबुद्ध-सिद्ध कहे गए हैं, वे परोपदेशपूर्वक ज्ञान की उत्कृष्टता को प्राप्त करते हैं। इस अपेक्षा से तीर्थकर भगवान 'प्रत्येकबुद्ध सिद्ध' कहे जावेंगे । परमार्थ-दृष्टि इस प्रकार विविध दृष्टियों से सिद्ध भगवान के विषय में परमागम में प्रकाश डाला गया है । परमार्थतः सब सिद्ध समानरूप से स्वभावरूप परिणत हैं। उनका यथार्थ बोध न मिलने से एकान्त पक्षवालों ने भ्रान्त धारणाएँ बना ली हैं। . सिद्ध भगवान के विषय में विविध अपरमार्थ विचारों का निराकरण करते हुए सिद्धान्त चक्रवर्ती प्राचार्य नेमिचन्द्र कहते हैं-- अट्ठविहकम्मवियला सीवी भूदा णिरंजणा णिच्चा। अट्ठगुणा किदकिच्चा लोयग्ग-णिवासिणो सिद्धा ॥गो जी० ६८॥ वे सिद्ध भगवान ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों से रहित हैं, अतएव वे सदाशिव मत की मान्यता के अनुसार सदा से मुक्त अवस्था संपन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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