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________________ नीर्थकर [ ३०५ उत्सर्पिणी काल में सिद्धों की अल्प संख्या राजवार्तिक में अकलंक स्वामी लिखते हैं, उत्सर्पिणी काल में सिद्ध होने वाले जीव सबसे कम हैं। अवसर्पिणी काल में सिद्ध होने वालों की संख्या उनसे विशेष अधिक कही गई है। अनुत्सर्पिणीउत्सर्पिणी काल (विदेह में नित्य चतुर्थकाल रहता है अत: वहां उत्सर्पिणी-अनुपिणी का विकल्प नहीं हैं। वहां का काल अनुत्सपिणी-उत्सर्पिणी काल कहा जायगा) की अपेक्षा सिद्ध संख्यातगुणे हैं। कहा भी है "सर्वस्तोका उत्सर्पिणी सिद्धाः । अवसर्पिणी सिद्धाः विशेषाधिकाः । अनुत्सपिण्यवसर्पिणी सिद्धाः संख्ययगुणा:"-- (अध्याय १०, सूत्र १०) । विशेष कथन पूज्यपाद स्वामी ने कहा है--"सर्वतः स्तोका लवणोदसिद्धाः, कालोदसिद्धाः संख्येयगुणाः । जंबूद्वीपसिद्धा: संख्येयगुणाः । धातकीखण्डसिद्धाः संख्येयगुणाः । पुष्करार्धसिद्धाः संख्येयगुणाः" (अध्याय १०, सूत्र १०)-सबसे न्यून संख्या लवणसमुद्र से सिद्ध होने वालों की है। उनसे संख्यातगुणें कालोदधि से सिद्ध हुए हैं। उनसे भी संख्यात गुणित जंबूद्वीप से सिद्ध हैं। धातकीखंड द्वीप से सिद्ध होने वाले संख्यातगुणे हैं । पुष्करार्धद्वीप से सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुणे हैं। उन्होंने यह भी कहा है :--"जघन्येन एकसमये एकः सिध्यति, उत्कर्षेणाष्टोत्तरसंख्या"-जघन्य से एक समय में एक जीव सिद्ध होता है, अधिक से अधिक एक सौ आठ जीव एक समय में मुक्त होते हैं। ___ ज्ञानानुयोग की अपेक्षा सिद्धों के विषय में इस प्रकार कथन किया गया है। मति-श्रुत-मनःपर्ययज्ञान को प्राप्त करके सिद्ध होने वाले सबसे कम हैं। उनसे संख्यातगुणें मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान से सिद्ध हुए हैं। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यज्ञान से सिद्ध २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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