SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर [ २९७ यदि श्रावक के स्थान में मुनि पदवी प्राप्त महापुरुष ने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया और वह चरम शरीरी आत्मा है तो उनके ज्ञानकल्याणक तथा मोक्षकल्याणक होंगे। पाँच कल्याणक वाले तीर्थंकर तो सर्वत्र विख्यात हैं। चार कल्याणक तथा एक कल्याणक वाले तीर्थकर नहीं होते। कहा भी है. :-- "तीर्थबंधप्रारंभश्चरमांगाणामसंयत-देशसंयतयोस्तदा कल्याणानि निःक्रमणादीनि त्रीणि, प्रमत्ताप्रमत्तयोस्तदा ज्ञाननिर्वाणे द्वे । प्राग्भवे तदा गर्भावतारादीनि पंचेत्यवसेयम्” (गोम्मटसार कर्मकांड गाथा ५४६, संस्कृतटीका पृष्ठ ७०८)-जब तीर्थंकर प्रकृति के बंध का प्रारंभ चरमशरीरी असंयमी अथवा देशसंयमी करते हैं, तब तप, ज्ञान तथा निर्वाण ये तीन कल्याणक होते हैं। जब प्रमत्त संयत तथा अप्रमत्त संयत बंध का प्रारंभ करते है, तब ज्ञान और निर्वाण ये दो कल्याणक होते हैं। यदि पूर्वभव में बंध को प्रारम्भ किया था, तो गर्भावतरण आदि पंचकल्याणक होते हैं। सूक्ष्म विचार ___इस संबंध में सूक्ष्म विचार द्वारा यह महत्व की बात अवगत होगी कि तीर्थंकर प्रकृति सहित आत्मा को तीर्थंकर कहते हैं । उसका उदय केवली भगवान में रहता है। उसकी सत्ता में तो मिथ्यात्व गुणस्थान तक हो सकता है । एक व्यक्तिने भरतक्षेत्र में तीर्थंकर प्रकृतिका बंध किया। वह मरण कर यदि दूसरे या तीसरे नरक में जन्म धारण करता है, तो अपर्याप्तावस्था में वह मिथ्यात्वी ही होगा । सम्यक्त्वी जीव का दूसरी अादि पृथ्वियों में जन्म नहीं होता है । उन पृथ्वियों में उत्पत्ति के उपरान्त सम्यक्त्व हो सकता है । तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाला जीव तीसरे नरक तक जाता है। वहां सम्यक्त्व उत्पन्न होने के उपरान्त पुनः तीर्थकर प्रकृति का बंध हो सकता है । गो० कर्मकांड में कहा है “घम्मे तित्थं बंधदिवंसा-मेघाण पुण्णगो चेव ।" (गाथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy