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________________ २९६ ] तीर्थकर जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र, ऐरावत क्षेत्र तथा विदेह क्षेत्र (देवकुरु तथा उत्तरकुरु को छोड़कर) रूप कर्मभूमियां मानी गई है। आजकल जंबूद्वीप सम्बन्धी विदेह में पूर्व तथा पश्चिम विदेहों के दो दो भागों में चार तीर्थकर विद्यमान हैं। धातकीखण्ड में उनकी संख्या आठ कही है, कारण वहाँ दो भरत, दो ऐरावत, दो विदेह कहे गए हैं । पुष्करार्ध द्वीप में धातकीखण्ड सदृश वर्णन है । वहाँ भी पाठ तीर्थकर विद्यमान हैं । इस प्रकार कम से कम ४+६+८=२० बीस विद्यमान तीर्थकर कहे गए हैं। अधिक से अधिक तीर्थकरों की संख्या एक समय में एक गौ सत्तर मानी गई है। तीर्थंकरों की संख्या पंच भरत, पंच ऐरावत क्षेत्रों में दुषमासुषमा नामके चतुर्थ कालमें दस तीर्थकर होते हैं । एक विदेह में बत्तीस तीर्थकर होते हैं । पाँच विदेहों में १६० तीर्थकर हुए। कुल मिलाकर उनकी संख्या १७० कही गई है । हरिवंशपुराण में लिखा है : द्वीपेष्वर्धतृतीयेषु ससप्तति-शतात्मके। धर्मक्षेत्रे त्रिकालेभ्यो जिनादिभ्यो नमो नमः ॥२२--२७॥ अढ़ाई द्वीप में १७० धर्मक्षेत्रों में भूत, वर्तमान तथा भविष्यत् काल सम्बन्धी अरहंतादि जिनेन्द्रों को नमस्कार हो । विदेह में तीर्थंकारों के कल्याणक विदेह के तीर्थकरों में सबके पाँचों कल्याणकों का नियम नहीं है । भरत तथा ऐरावत में पंचकल्याणकवाले तीर्थकर होते हैं । विदेह में किन्हीं के पाँच कल्याणक होते हैं, किन्हीं के तीन होते हैं, किन्हीं के दो भी कल्याणक होते हैं । इस विषय में विशेष बात इस प्रकार जानना चाहिये कि विदेह में जन्मप्राप्त श्रावक ने तीर्थकर के पादमूल में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । वह यदि चरमशरीरी है, तो उस जीव के तपकल्याणक, ज्ञानकल्याणक तथा निर्वाणकल्याणक होंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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