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राष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन् ने अखिल भारतीय प्राच्य परिषद् (All-India Oriental Conference ) के सभापति के रूप में विविध धर्मों पर प्रकाश डालते हुए सर्वधर्मों के प्रति समादर के भाव का पोषण किया था । उन्होंने कहा था-
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"Asoka ordered to be carved in stone columns and rocks the precepts of Buddhism. He enjoined his 'Children', i.e, his people, to love one another, to be kind to animals, to respect all religions." (Occasional Speeches and Writings P. 268. ) --
"अशोक ने यह आज्ञा दी थी कि पाषाण स्तम्भों एवं चट्टानों पर बुद्ध धर्म की शिक्षाएं उत्कीर्ण की जावें । उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि परस्पर में प्रेम करें, प्राणियों पर दयाभाव धारण करें तथा सर्वधर्मो के प्रति आदर-बुद्धि रखें।" उन्होंने यह भी कहा था कि :
"The future of Religion and mankind will depend on the choice we make. Concord, not discord, will contribute to the establishment of spiritual values in the life of mankind. Concord alone is meritorious, said Asoka Samavaya eva Sadhuh." (P. 286)
जो धर्मान्ध तमोगुण प्रधान व्यक्ति धार्मिक विद्वेष को जगाते हैं, वे दुर्गति को प्राप्त करते हैं । गौतम बुद्ध ने कहा था - "लोहे का मुरचा (rusi ) ही लोहे को खाता है, उसी प्रकार पापी को उसके पाप खाते हैं ।"
मीता में लिखा है
'समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।” (६-२७) एक विवेकी ईश्वर भक्त विश्व में प्रभु का दर्शन कर सर्वत्र प्रेम का सिन्धु लहराते हुए देखता है और कहता है, मैं तो सर्वत्र ईश्वर और उनका वैभव देखता हूँ । मुझे कोई शत्रु नहीं दिखता। वास्तव में मैं तो शत्रु और मित्र इस द्वैतभाव से विमुक्त अद्वैत एकत्व का सौन्दर्य देखता हूँ । तुलसीदासजी ने रामायण में कितना सुन्दर लिखा है :
उमा जे रामरचन रत विगत काम-मद- क्रोध । निज प्रभुमय देखहि जगत् केहि सन करहि विरोध ॥
भारत देश के सम्पूर्ण प्रभुत्वपूर्ण लोकतंत्रात्मक गणराज्य ( Sovereign Democratic Republic) ने धर्म के विषय में सर्वधर्म समादर की भावना को स्वीकार करते हुए, भारत के नागरिकों को धर्म, पूजा, विश्वास तथा मत
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