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________________ तीर्थकर [ २२१ शक्ति का सद्भाव स्वीकार करना अतिशयोक्ति नहीं है, किन्तु वास्तविक सत्य है। अनंतशक्तिरात्मेति श्रुतिर्वस्त्वेव न स्तुतिः। यत्स्वद्रव्ययुगात्नैव जगज्जैत्रं जयेत् स्मरम् ॥७--१७।। __सागारधर्मामृत। कवि का भाव यह है कि संसार भर में काम का साम्राज्य फैला है । पशुवर्ग, मनुष्य समाज के सिवाय देवी देवताओं पर भी काम का अनुशासन है । गुरुपूजा में ठीक ही कहा है :-- कनक, कामिनी, विषयवस दीसै सब संसार। त्यागी वैरागी महा साधु सुगुन-भण्डार ॥ __ स्वानुभव में निमग्न जिनेन्द्र भगवान ने काम कषाय का मलोच्छेद कर दिया है । अतः अनन्त जीवों को अपना दास बनाने वाले कामशत्रु का विध्वंस करने वाले जिनेन्द्र भगवान में अनंतशक्ति का अस्तित्व स्वयमेव सिद्ध होता है । निर्विकार दिगम्बर मुद्रा द्वारा हृदय की शुद्धता पूर्णतया प्रमाणित होती है । गणधर के बिना दिव्य-ध्वनि योग्य सामग्री का सन्निधान प्राप्त होने पर कार्य होता है । चैत्र कृष्णा नवमी को वृषभनाथ भगवान केवलज्ञानी हो गए। इतने मात्र से दिव्यध्वनि की उद्भूति नहीं होगी, जब तक सहायक इतर सामग्री न मिल जाय। यहाँ गणधर कौन बनेगा ? दिव्यध्वनि से धर्मतत्व जानकर मुमुक्ष गणधर बनेंगे । लोग धर्म को जानते नहीं हैं। महावीर भगवान के समय जैसी कठिनता उपस्थित होती है। आगम में कहा है--बैशाख सुदी दशमी को महावीर भगवान के केवलज्ञान हो जाने पर ६६ दिन पर्यन्त दिव्यध्वनि उत्पन्न नहीं हुई थी, यद्यपि अन्य सर्व-सामग्रीका समुदाय वहाँ विद्यमान था । जयधवला टीका में कहा है कि उस समय गणधरदेव रूप कारण का प्रभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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