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________________ २१० ] तीर्थकर दोनों पाठ ठीक हैं __ कभी-कभी यह शंका उत्पन्न होती है कि 'णमो अरिहंताणं' पाठ ठीक है या ‘णमो अरहंताणं' ? उपरोक्त विवेचन के प्रकाश में यह विदित होता है कि दोनों पाठ सम्यक् हैं । महत्व की बात बृहत्प्रतिक्रमण पाठ के सूत्र में गौतमगणधर बताते हैं कि 'सुत्तस्स मूलपदाणमच्चासणदाए' अर्थात् आगम के मूलपदों में हीनताकृत जो दोष उत्पन्न हुआ है उसका मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ । प्रभाचन्द्राचार्य के टीका में ये शब्द आए हैं :--'सूत्रस्य अागमस्य सम्बन्धिनां मूलपदानां प्रधानपदानामत्यासादनता हीनता तस्यां सत्यां यः कश्चिदुत्पन्नो दोषस्तं प्रतिक्रमितुमिच्छामि ।' इसका उदाहरण देते हुए वे कहते हैं---"तं जहा णमोक्कारपदे णमो अरहंताणामित्यादिलक्षणे पंचनमस्कारपदे याऽत्यासादनता तस्यां अरहंतपदे इत्यादि अर्हदा-दीनां वाचके पदे याऽत्यासादनता तस्यां मङ्गलपदे चत्तारिमङ्गल मित्यादिलक्षणे, लोगुत्तमपदे चत्तारि लोगुत्तमा इत्यादि स्वरूपे, सरणपदे-चत्तारिसरणं पव्वज्जामि इत्यादि लक्षणे" (पृष्ठ १३६)। इसमें उल्लेखनीय बात यह है कि गौतमस्वामी णमोक्कारपद के द्वारा णमो अरहंताणं इत्यादि पंच नमस्कार पद का संकेत करते हैं। इससे यह ‘णमो अरहंताणं' आदि पद रूप नमस्कार मंत्र षट्खंडागम सूत्रकार भूतबलि-पुष्पदंत कृत है यह धारणा भ्रांत प्रमाणित होती है । इसके पश्चात् 'अरहंतपदे' शब्द का प्रयोग आया है, 'अरिहंत पदे' शब्द नहीं है। में केवल एक ही गुण प्रकाश में आता है। जैसे बुद्ध शब्द प्रभु की ज्ञानज्योति को सूचित करता है । अरहंत का भाव है पूजनीय, योग्य Adorable, Worthy । किसी को Worthy कहने से अनेक गुणपुञ्ज का सद्धाव व्यक्त होता है । अतएव अरहंत शब्द व्यापक तथा गम्भीर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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