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________________ तीर्थंकर विशेष बातें उस समय कौन सी अपूर्व बातें होती हैं, इसका उल्लेख करते हुए महापुराणकार कहते हैं । श्रथ घातिजये जिष्णोरनुष्णीकृत - 1 त्रिलोक्यामभवत् क्षोभः कैवल्योत्पत्तिवात्यया ॥२२ - १॥ - विष्टपे । जब जिनेन्द्र भगवान ने घातिया कर्मों पर विजय प्राप्त की, उस समय संसार भर का संताप दूर हो गया । केवलज्ञान की उत्पत्ति रूपी महान् वायु के द्वारा तीनों लोकों में हलचल मच गई । वातावरण [ १५९ उस समय कल्पवासी देवों के यहाँ घण्टानाद, ज्योतिषी देवों के यहां सिंहनाद, व्यंतरों के यहां मेघ गर्जना सदृश नगाड़ों की ध्वनि तथा भवनवासी देवों के यहाँ शंखध्वनि हो रही थी । "विष्टराण्यमरेशानां प्रशनैः प्रचकंपिरे" समस्त इंद्रों के आसन बड़े जोर से कंपित हुए । पुष्पांजलि-मिवातेनुः समन्तात् सुरभूरुहाः । चलच्छाखाकरें-दर्घ-विगलत्कुसुमोत्करः ।। २२--८।। अपने दीर्घ शाखा रूपी हाथों से चारों ओर पुष्पवृष्टि करते हुए कल्पवृक्ष ऐसे शोभायमान हो रहे थे, मानो भगवान को पुष्पांजलि ही अर्पण कर रहे हों । दिशः प्रसत्ति-मासेदुः बभ्राजे व्यभ्रमम्बरम् । विरजीकृत भूलोकः शिशिरो महेदाववौ ॥६॥ Jain Education International समस्त दिशाएँ निर्मल हो गई थीं, नभोमंडल मेघ रहित शोभायमान होता था, पृथ्वी मण्डल धूलिरहित हो गया था तथा शीतल पवन बह रही थी । इति प्रमोद-मातन्वन् प्रकस्मात् भुवनोबरे । केवलज्ञान - पूर्णेन्दुः जगवन्धिम् प्रवीवृषत् ॥ १० ॥ इस प्रकार समस्त संसार के भीतर अकस्मात् आनन्द को For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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