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तीर्थकर
[ १२९ के दर्शन से रोमांच युक्त हो गया था। वे दोनों प्रभु के समीप सौधर्म और ईशान स्वर्ग के इन्द्रों सदृश दिखते थे। अपूर्व दृश्य
पर्यन्ततिनोर्मध्ये तयोर्भर्ता स्म राजते। महामेररिवोद्भूतो मध्ये निषधनीलयोः ॥२०--७७॥
दोनों ओर खड़े हुए महाराज सोमप्रभ और श्रेयांस के मध्य में भगवान इस प्रकार शोभायमान होते थे मानो निषध और नील पर्वतों के मध्य में सुमेरुगिरि ही खड़ा हो । जन्मान्तर की स्मृति
उस समय राजकुमार श्रेयांस को भगवान का दर्शन कर पूर्व जन्म का स्मरण हो गया, जबकि भगवान राजा वज्रजंघ थे और श्रेयांसकुमार का जीव उनकी महारानी श्रीमती था तथा जिस भव में उन दोनों ने दमधर और सागरसेन नाम के गगनगामी महामुनियों को भक्ति पूर्वक आहार दान दिया था तथा उसके फल स्वरूप देवताओं ने पंचाश्चर्य किए थे। उस जातिस्मरण के फलस्वरूप राजकुमार श्रेयांस के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि उक्त समय मुनि को आहार दान के उपयुक्त है । पूर्व जन्म के संस्कारों से राजकुमार को आहारदान की सब विधि ज्ञात हो गई।
इक्षुरास का दान
श्रेयांसकुमार ने राजा सोमप्रभ और उनकी रानी लक्ष्मीमती के साथ भगवान के हाथ में इक्षुरस का आहार दिया था।
श्रेयान् सोमप्रभेणामा लक्ष्मीमत्या च सादरम्।
रसमिक्षोरदात् प्रासुमुत्तानीकृतपाणये ॥२०--१००॥
उस समय के आनन्द का कौन वर्णन कर सकता है? भगवान के आहार ग्रहण के समाचार सुनकर समस्त संसार को अपार प्रानन्द हुआ था।
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