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________________ १२८ ] तीर्थकर स्वरूप हैं । सौन्दर्य में कामदेव है। कांति में चन्द्रमा तथा दीप्ति में सूर्य के समान हैं। श्रेयांस राजा का स्वप्न वैशाख शुक्ला की तृतीया के प्रभात में महापुण्यवान श्रेयांस महाराज ने सुन्दर स्वप्न देखे । प्रथम स्वप्न में राजकुमार ने सुवर्णमय विशालकाय तथा उन्नत सुमेरु पर्वत देखा । इस स्वप्न का फल निरूपण करते हुए राजपुरोहित ने कहा :-- ___मेरुसन्दर्शनाद्देवो यो मेकरिव सून्नतः । मेरी प्राप्ताभिषेकः स गृहमष्यति नः स्फुटम् ॥२०--४०॥ सुमेरु के दर्शन से यह सूचित होता है कि जो प्रभु सुमेरु सदृश समुन्नत हैं तथा जिनका सुमेरुगिरि पर अभिषेक हुआ, वे अपने राजभवन में पधारेंगे । अन्य स्वप्न भी उन्हीं भगवान के गुणों की उन्नति को सूचित करते हैं। आज उन भगवान के योग्य विनय के फलस्वरूप हमारे बड़े भारी पुण्य का उदय होगा। पुरोहित ने यह भी कहा :-~ प्रशंसा जगति ख्यातिम् अनल्पा लाभसम्पवम् । प्राप्स्यामो नात्र सन्द्रिह्मः कुमारश्चात्र तत्ववित् ॥२०-४२॥ अाज हमें जगत् में महान् कीर्ति तथा विपुल सम्पत्ति प्राप्त होगी, इस विषय में सन्देह का स्थान नहीं है । राजकुमार स्वयं इस रहस्य के ज्ञाता हैं। सिद्धार्थ द्वारपाल द्वारा सूचना __ अल्पकाल के पश्चात् भगवान राजमन्दिर की ओर आते हुए दृष्टिगोचर हुए । तत्काल सिद्धार्थ नाम के द्वारपाल ने राजा सोमप्रभ तथा राजकुमार श्रेयांस को मंगल समाचार सुनाए । दोनों भाई राजभवन के प्रांगण के बाहर आए और वहाँ उन्होंने भगवान् के चरणों को जल से धोकर उनकी प्रदक्षिणा की । उनका शरीर भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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