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________________ तीर्थकर [ १२७ अंतराय कर्मोदयवश उस समय इन्द्र को भी प्रभु की गूढ़चर्या का ध्यान नहीं रहा । अमितगति प्राचार्य ने यथार्थ कहा है, कि जीव को उसके शुभ-अशुभकर्मों के सिवाय अन्य सुख दुःख नहीं देता है। भवितव्यता एक बात विचारणीय है कि वैशाख सुदी दशमी को ज़ भकग्राम की ऋजुकूला नदी के तट पर महावीर भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न हया । उस समय गणधर का योग नहीं मिला । इस कारण भगवान की दिव्य ध्वनि छियासठ दिन तक नहीं खिरी थी। उस समय सुचतुर इन्द्र ने इन्द्रभूति ब्राह्मण को भगवान के सानिध्य में उपस्थित किया । मानस्तम्भ दर्शन से इन्द्रभूति गौतम का अहंकार दूर हा और शीघ्र ही वह महामिथ्यात्वी व्यक्ति श्रमण संघ का नायक गौतम गणधर बना । कदाचित् इन्द्र ऐसी कुशलता भगवान के छह मास के प्रतिमा योग के पश्चात् दिखाता और लोगों को आहार दान की विधि से अवगत कराता, तो त्रिलोकीनाथ को एक वर्षाधिक काल के पश्चात् क्यों आहार प्राप्ति का योग मिलता ? प्राचार्य समन्तभद्र स्वामी ने कहा है, 'अलंध्यशक्ति भवितव्यतेति'-भवितव्यता की सामर्थ्य अलंघनीय है। उसमें बाह्य तथा अन्तरंग सामग्रो का योग आवश्यक है। हस्तिनापुर में आगमन भगवान विविध देशों में विहार करते हुए कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में पहुँचे । वहाँ के राजा सोमप्रभ महाराज हैं। उनके छोटे भाई श्रेयांस महाराज हैं। तस्यानुजः कुमारोऽभूच्छ्यान् श्रेयान्गुणोदयः । रूपेग मन्मथः कान्त्या शशी दोप्त्या स भानुमान् ॥२०-३१॥ उनके अनुज श्रेयांसकुमार हैं । गुणों की वृद्धि से वह श्रेय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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