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तीर्थकर
अब मैं तीक्ष्ण तपस्या के द्वारा शीघ्र ही कर्म-बंधनों को मूल से काटने के लिए उद्योग करूँगा। ऐसा कौन व्यक्ति है जो मोह निद्रा दूर होने से जागकर अपनी निर्मल आत्मा को कर्मों के जेलखाने म पराधीन देखकर उपेक्षा या प्रमाद करेगा ? विष मिश्रित मधुर लगने वाले भोजन को कोई व्यक्ति अजानकारी वश तब तक खाता है, जब तक उसे यह सत्य अवगत नहीं होता कि इस भोजन में प्राण घातक पदार्थ मिले हुए हैं। रहस्य का ज्ञान होते ही वह तत्काल उस आहार को छोड़ देता है । इसके सिवाय वह उस उपाय का प्राश्रय लेता है, जिससे खाया गया विष निर्विषता को प्राप्त हो जाय । ऐसी ही स्थिति अब भगवान् की हो गई ।
अपने जीवन के अनमोल क्षणों का अपव्यय उनको अब बहुत व्यथित कर रहा है । मन बारंबार पश्चात्ताप करता है । अब उनकी आत्मा सच्चे वैराग्य के प्रकाश से समलंकृत हो गई। जो अयोध्यावासी उनकी ममता के केन्द्र थे, जो परिवार उनके स्नेह तथा ममत्व का मुख्य स्थल था, मनोवृत्ति में परिवर्तन होने से सभी कुछ आत्म विकास में प्रबल विघ्न दिखने लगे।
अब उनको बाह्य कुटुम्ब के स्थान में आत्मा के सच्चे बंधुओं की इस प्रकार याद आ गई कि क्षमा, मार्दव, सत्य, शील, संयम आदि ही मेरे सच्चे बंधु हैं, कुटुम्बी हैं, अन्य बंधु तो बंध के मूल हैं, कुगति में पतन कराने वाले हैं । अब मैं पुन: मायाजाल में नहीं फतूंगा। अब मेरी मोह निद्रा दर हो गई । नीलांजना के निमित्त ने उनके नेत्रों के लिए नील अंजन का काम किया। इस अंजन के द्वारा उन्हें सच्चे स्व और पर का पूर्ण विवेक हो गया । वैसे सम्यक्त्व के अधिपति होने से वे स्वानुभूति के स्वामी थे, किन्तु अंतर्मुख बनने में चारित्र मोह उपद्रव करता था। अब प्रबल और सजीव वैराग्य ने उनके अंतर्चा खोल दिए।
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