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________________ तीर्थंकर [ ६५ के द्वारा ही कार्य होता है, ऐसा एकान्त पक्ष अनेकान्त शासन को अमान्य है किन्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भावरूप सामग्री चतुष्टय का भी महत्व है। यदि कृषक खेत में बीज वपन करते समय द्रव्य, क्षेत्र, कालादि का उचित ध्यान रखता है, तो उसे इष्ट धान्य प्रचर प्रमाण में परिपाक के पश्चात् प्राप्त होता है; किन्तु यदि उसने द्रव्यादि चटुष्टय की उपेक्षा की, तो अन्त में उसकी मनोकामना पूर्ण नहीं होगी। स्वाति नक्षत्र के उदयकाल में यदि मेघ की बिन्दु सीप के भीतर प्रवेश करती है, तो उस जल का मुक्तारूप में परिणमन होता है। इस कालिक अनुकूलता के अभाव में सीप में गया हुआ जल मोती के रूप को नहीं धारण करता है। भूत नैगमनय की अपेक्षा दीपावली के दिन यह कहा जाता है-"अद्य दीपोत्सवदिने श्रीवर्धमानस्वामी मोक्षं गतः” (आलापपद्धति पृष्ठ १६६) आज दीपोत्सव के दिन ही वर्धमान स्वामी मोक्ष गए हैं। उस दीपावली के दिन जो वीरनिर्वाण के विषय में कालिक समानता के कारण चित्त में निर्मलता तथा प्रसन्नता की उपलब्धि होती है, वह प्रत्येक श्रावक के अनुभवगोचर है। दीपावली के दिन यदि पावापुरी क्षेत्र में वर्धमान भगवान की निर्वाण पूजा का सुयोग लाभ मिलता है, तो गृहस्थ अपने को विशेष भाग्यशाली अनुभव करता है। मरीचि का उदाहरण महावीर भगवान के जीव भरतेश्वर के पुत्र मरीचिकुमार ने अपने पितामह ऋषभनाथ भगवान के साथ मुनिमुद्रा धारण की थी, किन्तु काललब्धि न मिलने से वह जीव किंचित् न्यून कोडाकोड़ी सागर प्रमाण नाना योनियों में भ्रमण करता रहा । काललब्धि आने पर वही जीव तीर्थंकर महावीर स्वामी के पद को प्राप्त कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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