________________
तप-कल्याक नीलांजना के जीवन के माध्यम द्वारा भगवान के मन में अलौकिक वैराग्य ज्योति जग गई। वैराग्य-सूर्य के उदय होने से मोह की अंधियारी दूर हो गई । प्रहापुराणकार के शब्दों में आदिनाथ भगवान विचार करते हैं :
नारीरूपमयं यंत्रमिदमत्यन्तपेलवम् ।
पश्यतामेव नः साक्षात् कथमेतत् अगाल्लयम् ॥३६॥
देखो ! यह नारीरूप अत्यन्त मनोहर यन्त्र सदृश नीलांजना का शरीर हमारे साक्षात् देखते-देखते किस प्रकार क्षय को प्राप्त हो गया ?
रमणीयमिदं मत्वा स्त्रीरूपं बहिरुज्ज्वलम् ।
पतन्तस्तत्र नश्यंति पतंग इव कामुकाः ॥३७॥
बाहर से उज्ज्वल दिखने वाले स्त्री के रूप को अत्यन्त मनोहर मानकर कामीजन उस पर आसक्त होकर प्रकाश पर पड़ने वाले पतंगे सदृश नष्ट होते हैं।
कूटनाटकमेतत्तु प्रयुक्तममरेशिना। नूनमस्मत्प्रबोधाय स्मृतिमाधाय धीमता ॥१७ पर्व, ३८॥
इन्द्र ने जो यह नीलांजना का नृत्य रूप कृत्रिम नाटक कराया था, यथार्थ में बुद्धिमान अमरेन्द्र ने गम्भीर विचार पूर्वक हमारे प्रबोध हेतु ही ऐसा किया है ।
काल लब्धि का महत्व
काल लब्धि समीप आने पर साधारण वस्तु भी महान् प्रबोध तो प्रदान करती है। किन्हीं की यह धारणा है कि काल द्रव्य तो पर तत्व है । उसकी अनुकूलता या प्रतिकूलता कोई महत्व नहीं धारण करती है । यह धारणा आगम तथा अनुभव के विरुद्ध है । कालद्रव्य
( ९४ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org