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तीर्थंकर
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द्वारा भगवान के समीप अपना सुझाव उपस्थित करना उपयुक्त सोचकर प्रभु के समक्ष नीलांजना अप्सरा के सुन्दर नृत्य की योजना की । नीलांजना का जीवन कुछ क्षण शेष रहा था ।
प्रभु की प्रबुद्धता
नृत्य करते करते उस अप्सरा नीलांजना को प्रत्यक्ष में मृत्यु के मुख में जाते हुए देखकर भगवान की आत्मा प्रबुद्ध हो गई । अवधिज्ञान
।
के प्रयोग द्वारा उन्हें समस्त रहस्य ज्ञात हो गया । वे गंभीर हो वैराग्य के विचारों में निमग्न हो गए । रागवर्धक सामग्री राज सभा का मन मुग्ध कर रही थी, किन्तु भगवान तपोवन की ओर जाने की सोचने लगे । अब उनके जीवन प्रभात में वैराग्य रूप प्रभाकर के उदय की वेला समीप आ गई। उनकी दृष्टि विशेष रूप से ज्योतिर्मय प्रात्मदेव की ओर केन्द्रित हो गई ।
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