________________
तीर्थकर
[ ८१ इसलिये सत्पुरुष का कर्तव्य है कि आगम के साथ खिलवाड़ न करे । जब भगवान ऋषभदेव ने स्वयं अपने पुत्रों के यज्ञोपवीत आदि संस्कार किए थे तब उनको जैन संस्कृति की वस्तु न मानना क्या अनुचित नहीं है ?
भरत बन्धु
भरत के पश्चात् उनके निन्यानवे भाई और हुए। वे सभी चरम-शरीरी और बड़े प्रतापी थे । भरत की बहिन का नाम ब्राह्मी था । सुनंदा महादेवी से प्रतापी पुत्र बाहुबली तथा सुन्दरी नामकी पत्री का जन्म हुआ था ।
बाहुबली
बाहुबली के नाम की अन्वर्थता पर महापुराणकार इस प्रकार लिखते हैं---
बाहू तस्य महाबाहोः प्रधातां बलमूज्जितम् । यतो बाहूबलीत्यासीत् नामास्य महसां निधेः ।।१६--१७॥
उन तेजपुंज विशाल बाहु की दोनों भुजाएं उत्कृष्ट बल से परिपूर्ण थीं; इसलिये उनका बाहुबली नाम सार्थक था ।
भगवान के सभी पुत्र पुण्यशाली थे। उनकी भुजायें घुटनों तक लम्बी थीं और वे व्यायाम के कारण कठोर थीं। "व्यायाम कर्कशी बाहू पीनावाजानुलंबिनौ” (४६) सब राजकुमारों में भरत सूर्य तुल्य, बाहुबली चन्द्र समान तथा अन्य राजकुमार नक्षत्र मंडल सदृश शोभायमान होते थे । ब्राह्मी दीप्ति के समान और सुन्दरी चांदनी के समान प्रतीत होती थी। उनके मध्य भगवान किस प्रकार शोभायमान होते थे, इसे महाकवि इस प्रकार व्यक्त करते हैं
स तैः परिवृतः पुत्रः भगवान् वृषभो-बभी। म्योतिर्गणः परिक्षिप्तो यथा मे महोग्यः ॥१६--७१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org