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नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण नि:श्वास तथा कषाय आदि का अस्तित्व होता है।'
नियुक्तिकार ने प्रत्येक स्थावरकाय के निक्षेप, प्ररूपणा, लक्षण, परिमाण, उपभोग, हिंसा के शस्त्र, वेदना, वध और निवृत्ति- इन ९ द्वारों का वर्णन किया है। ये सभी द्वार आधुनिक जीवविज्ञान की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। त्रस जीवों में गति, आगति, भाषा आदि के स्पष्ट चिह्न दिखाई देने से उनके चैतन्य में कोई संदेह नहीं होता पर पृथ्वीकाय आदि जीवों में चैतन्य के व्यावहारिक लक्षण दिखाई नहीं देते अत: उनकी सजीवता सहजगम्य नहीं होती। पृथ्वीकाय
पृथ्वीकाय में चैतन्य-सिद्धि का हेतु देते हुए कहा गया कि जैसे मानव शरीर में मस्सा आदि समानजातीय मासांकुर उत्पन्न होते हैं, वैसे ही पृथ्वीकाय में समानजातीय वृद्धि होती है। खोदी हुई नमक की खान में नमक बढ़ता जाता है, समुद्र में मूंगा उत्पन्न होता है अत: पृथ्वी सजीव है। आधुनिक भूवैज्ञानिकों ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि शिलाखंड, पर्वत आदि में हानि-वृद्धि होती है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार केदारनाथ और बद्रीनाथ तीर्थस्थानों की ऊंचाई में पिछले ७० वर्षों में १०६ मीटर की वृद्धि हुई है तथा हिमालय की पर्वत-श्रृंखलाएं एक शताब्दी में १० सेमी. की गति से ऊंची हो रही हैं। इसी प्रकार इंडोनेशिया के द्वीप समूह की भूमि भी ऊपर उठ रही है। द्वीप की भूमि का उठाव एवं पर्वतों की वृद्धि से पृथ्वी की सजीवता सिद्ध होती है।
प्रश्न हो सकता है कि पृथ्वी इतनी कठोर है तो उसमें चैतन्य का लक्षण कैसे घटित हो सकता है, इसका उत्तर देते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि जैसे शरीर में हड्डी कठोर होती है पर उसमें चेतना अनुगत होती है, वैसे ही कठोर होते हुए भी पृथ्वीकाय में चैतन्य है।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र वसु तथा एफ. आर. एम. आदि विद्वानों ने अनेक प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि पत्थर, तांबा, लोहा आदि उत्तेजित किए जा सकते हैं तथा थोड़ी देर उत्तेजित होने के बाद इनमें थकान के चिह्न भी देखे जाते हैं। पर्वत आदि में क्लान्ति, चयापचय और मृत्यु-चैतन्य के ये तीनों लक्षण पाए जाते हैं। पृथ्वी का मानव-स्वभाव पर भी आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। भूवैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी में क्रोध, अहंकार, युद्ध, शांति, क्रूरता आदि स्वभाव होते हैं। उनके इस स्वभाव का प्रभाव मानव समुदाय पर स्पष्ट रूप से पड़ता है। जूलियस हेक्सले का मानना है कि केलिफोर्निया प्रांत या साइबेरिया भेजने पर मनुष्य अपनी हिंसकवृत्ति भूलकर गाय या बकरी की भांति पालतू बन जाते हैं। डॉ. चार्ल्स कैला के अनुसार अमरिकी गृहयुद्ध का कारण भूमि है। अप्काय
पानी में जीव है इसे अनेक दार्शनिक स्वीकार करते थे पर पानी स्वयं जीव है, यह महावीर की नयी प्रस्थापना है। पानी में जीवत्व-सिद्धि का हेतु देते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि जैसे तत्काल उत्पन्न (सप्ताह पर्यन्त) कललावस्था प्राप्त हाथी का द्रव शरीर सचेतन होता है, जैसे तत्काल उत्पन्न अंडे का मध्यवर्ती उदक-रस सचेतन होता है, वैसे ही अप्काय के जीव तरल होते हुए भी सजीव होते हैं।५
१. आनि ८४। २. आनि ६८।
३. षड्, टी पृ.२३८, भिक्षुन्यायकर्णिका ७/११ । Jain Education International
४. आनि ८५ । ५. आनि ११०।
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