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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण अनंतर योग से उत्पन्न होते हैं इसलिए अंतिम वर्ण शूद्र का व्यपदेश होता है। नियुक्तिकार के अनुसार अम्बष्ठ आदि ९ वर्णान्तर जातियों की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है मागध सूत । क्षत्त । वैदेह | चाण्डाल वर्णान्तर | अम्बष्ठ | उग्र | निषाद/ | अयोगव परासर पुरुष ब्राह्मण क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्या शूद्रा वैश्या वैश्य क्षत्रिय वैश्य | शूद्र ब्राह्मणी | ब्राह्मणी शूद्रा क्षत्रिया ब्राह्मणी क्षत्रिया मनुस्मृति में वर्णान्तर के स्थान पर वर्णसंकर शब्द का प्रयोग हुआ है। मनुस्मृतिकार ने वर्णसंकर संतान उत्पन्न होने के तीन कारण माने हैं—१. व्यभिचार २. एक गोत्र में विवाह ३. यज्ञोपवीत संस्कार आदि छोड़ना। मनुस्मृति में चार वर्णों से उत्पन्न निम्न वर्णसंकर जातियों का उल्लेख मिलता है क्षत्त | वैदेह चाण्डाल वर्णान्तर | अम्बष्ठ| उग्र | निषाद/ | अयोगव' | मागध | सूत पारशव पुरुष ब्राह्मण क्षत्रिय ब्राह्मण | शूद्र वैश्य क्षत्रिय स्त्री वैश्या शूद्रा वैश्या क्षत्रिया ब्राह्मणी वैश्य ब्राह्मणी क्षत्रिया ब्राह्मणी गौतमधर्म सूत्रकार ने विवाह के प्रसंग में अम्बष्ठ, उग्र, निषाद, दौष्मन्त और पारशव को अनुलोम विवाहों से उत्पन्न वर्णसंकर जातियां मानी हैं तथा सूत, मागध, अयोगव, कृत, वैदेह और चाण्डालइन छह को प्रतिलोम विवाह१५ से उत्पन्न वर्णसंकर जातियां स्वीकार की हैं ।१६ मनुस्मृति में कृत के स्थान पर क्षत्र/क्षत्त शब्द का प्रयोग मिलता है ।१७ गौतम सूत्र में इन वर्णसंकर जातियों की संख्या ग्यारह मिलती है। नियुक्तिकार और मनुस्मृतिकार ने निषाद और पारशव को एकार्थक माना है। जबकि गौतमसूत्र में इन दोनों को भिन्न माना है। गौतम सूत्र के अनुसार इनकी उत्पत्तिक्रम में भी कुछ १. आनि २१। १०. मनु. १०/१२। २. आनि २२-२५॥ ११. मनु. १०/११ ३. मनु १०/२४। १२. मनु. १०/१२ ४. मनु. १०/८। १३. अनुलोम विवाह का अर्थ है उच्च वर्ण के पुरुष का अपने से निम्न ५. मनु.१०/९। वर्ण की स्त्री से विवाह। ६. मनु. १०/८। १४. गौ. १/४/१४; अनुलोमा अनन्तरैकान्तरव्यन्तरासु जाता:सवर्णाम्बष्ठोग्र ७. (क) मनु. १०/१२ । निषाददौष्मन्तपारशवाः । (ख) मनुस्मृति में अयोगव के स्थान पर १५. प्रतिलोम विवाह का अर्थ है पुरुष का अपने से उच्च वर्ण की स्त्री आयोगव का प्रयोग हुआ है। से विवाह। ८. मनु. १०/११ । १६. गौ. १/४/१५ प्रतिलोमास्तु सूतमागधायोगवकृतवैदेहकचण्डालाः । ९. मनु. १०/११। १७. मनु. १०/२६ । १८. आचारांगनियुक्ति में पारशव का परासर नाम मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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