SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवक्षण अर्थ और काम का वर्णन किया जा रहा है। धर्म दशवैकालिक की भांति नियुक्तिकार ने भी धर्म को उत्कृष्ट मंगल के रूप में स्वीकार किया है। ठाणं सूत्र में धर्म के तीन प्रकार मिलते हैं—१. श्रुतधर्म, २. चारित्रधर्म, ३. अस्तिकाय धर्म ।' आचार्य भद्रबाहु ने धर्म का वर्णन अनेक स्थानों पर किया है पर उनके भेद-प्रभेदों के वर्णन में एकरूपता नहीं है। कहीं संक्षिप्त नय से तथा कहीं विस्तार से वर्णन हुआ है। आवश्यकनियुक्ति के चतुर्विंशतिस्तव में आए धर्म शब्द की व्याख्या में धर्म के दो भेद किए गए हैं—द्रव्य और भाव । नियुक्तिकार ने द्रव्यधर्म को अनेक दृष्टियों से व्याख्यायित किया है - • द्रव्य का धर्म जैसे वस्तु का तिक्त आदि धर्म। • अनुपयुक्त–उपयोग रहित व्यक्ति का धार्मिक अनुष्ठान । (यहां अनुपयुक्त को द्रव्य कहा है।) • द्रव्य ही धर्म जैसे धर्मास्तिकाय। • गम्यधर्म आदि दशधर्म जैसे किसी देश में मातुल-दुहिता गम्य होती है। • कुतीर्थिकों-एकान्तवादियों का धर्म । भावधर्म के श्रुत और चारित्र दो भेद हैं। श्रुतधर्म में स्वाध्याय आदि का तथा चारित्र धर्म में क्षमा आदि दश श्रमणधर्मों का समाहार होता है। दशवैकालिकनियुक्ति में धर्म के मुख्यत: दो भेद किए हैं—अगारधर्म और अनगारधर्म। अगारधर्म बारह प्रकार का तथा अनगारधर्म दश प्रकार का है। कुल मिलाकर धर्म के बाईस भेद हो जाते हैं। दशवैकालिक के प्रथम अध्ययन की नियुक्ति में वर्णित धर्म के भेद-प्रभेदों को निम्न चार्ट से जाना जा सकता है धर्म भावधर्म अस्तिकाय धर्म (धर्मास्तिकाय आदि) प्रचारधर्म (इंद्रिय-विषय) लौकिक कुप्रावनिक लोकोत्तर गम्य पशु देश राज्य पुरवर ग्राम गण गोष्ठी राज श्रुतधर्म चारित्र धर्म १. दशनि ८८, १२०/२। ४. आवनि १०६४ । २. ठाणं ३/४१०। ५. दशनि २२३-२५ । ३. आवनि १०६३, हाटी पृ. ५। ६. धर्म के विस्तृत वर्णन हेतु देखें, दशनि ३६-४०, अचू पृ. १०, ११, हाटी प. २१-२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy