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________________ ६६४ नियुक्तिपंचक समण-समण। समेति व वाणी समणो। जो अपने कथन के अनुसार चलता है, वह समण है। (आचू. पृ. २७१) • जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्व जीवाणं। ० न हणति न हणावेति, य सममणई तेण सो समणो॥ जैसे मुझे दुःख अप्रिय है वैसे ही सब जीवों को है-ऐसा जानकर जो व्यक्ति न हिंसा करता है, न करवाता है तथा जो समान व्यवहार करता है, वह समण है। (दशनि. १२९) • मित्ता-ऽरिसु समो मणो जस्स सो भवति समणो। जिसका शत्रु और मित्र के प्रति समान मन होता है, वह समन है। (सूचू. १ पृ. २४६) • णत्थि य सि कोति वेसो, पिओ व सव्वेसु चेव जीवेसु। एएण होति समणो.....।। जिसके लिए कोई प्रिय या अप्रिय नहीं होता, वह समण है। (दशअचू. पृ. ३६) समर-समर, युद्ध। समरं नाम जत्थ हेट्ठा लोहयारा कम्मं करेंति अहवा सहारिभिः समरः। जहां लोहकार कार्य करते हैं, वह समर है अथवा जहां शत्रुओं के साथ सामना होता है, वह समर (युद्ध) है। (उचू. पृ. ३७) संवुडकम्मा-संयमी। मिथ्यादर्शनाऽविरति-प्रमाद-कषाय-योगा यस्य संवृता भवन्ति स संवृतकर्मा। जिसके मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग संवृत होते हैं, वह संवृतकर्मा-संयमी कहलाता है। (सूचू.१ पृ. ६९) समाहि-समाधि। समाधिर्नाम राग-द्वेषपरित्यागः। राग-द्वेष का परित्याग करना समाधि है। (सूचू.१ पृ. ६७) समाहितप्पा -समाहित आत्मा। नाण-दसण-चरित्तेसु सुट्ट आहितप्पा समाहितप्पा। ज्ञान, दर्शन, चारित्र में अच्छी तरह स्थित व्यक्ति समाहित कहलाता है। (दशअचू. पृ. २४१) समाहियच्च-समाहितार्च। जस्स भावो समाहितो स भवति समाहियच्चो। जिसके भाव समाधियुक्त होते हैं, वह समाधितार्च है। (आचू. पृ. २८१) समिइ-समिति। सम्मं पवत्तणं समिती। सम्यक् प्रवर्तन करना समिति है। (दशअचू. पृ. ५३) समुत्थिय-समुत्थित। मोक्षाय सम्यगुत्थिताः समुत्थिताः। __ मोक्षप्राप्ति के लिए सम्यक् पुरुषार्थ करने वाले समुत्थित कहलाते हैं । (सूचू.१ पृ. ६७) सयग्घी-शतघ्नी । शतं धनन्तीति शतघ्न्यः। एक साथ सौ को मारने वाला शस्र शतघ्नी है। (उचू.पृ. १८२) सरण-शरण। जेण आवति तरति जं अस्सिता णिब्भयं वसंति तं सरणं। जहां आपदाओं से रक्षा होती है तथा जहां निर्भयतापूर्वक रहा जा सकता है, वह शरण है। (आचू. पृ. ५३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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