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________________ ६३२ नियुक्तिपंचक जो ज्ञान आदि में स्थिर चित्त वाला होता है तथा अनुलोम और प्रतिलोम उपसर्गों और रतिअरति से भग्नचित्त नहीं होता, वह अचल कहलाता है। (दचू.प. ४३) अरह-अर्हत्। नास्य रहस्यं विद्यत इति अरहा। जिनके लिए कोई रहस्य नहीं रहता, वे अर्हत् हैं। (उचू.पृ. १४५) अलोलुय-अलोलुप। आहारदेहादिसु अपडिबद्ध अलोलुए। जो आहार और शरीर के प्रति अप्रतिबद्ध-अनासक्त होता है, वह अलोलुप है। (दशअचू.पू. २५४) • अलोलुए नाम उक्कोसेसु आहारादिसु अलुद्धो भवइ अहवा जो अप्पणो वि देहे अपडिबद्धो सो अलोलुओ भण्णइ। जो अच्छे आहार आदि में लुब्ध नहीं होता, वह अलोलुप है अथवा जो अपने शरीर में भी अप्रतिबद्ध होता है, वह अलोलुप कहलाता है। (दशजिचू. पृ. ३२१) अविहेडय-दूसरों को तिरस्कृत न करने वाला। अविहेडए णाम जे परं अक्कोस-तेप्पणादीहिं न विहेडयति। जो आक्रोश, ताड़ना आदि के द्वारा दूसरों को तिरस्कृत नहीं करता, उसे अविहेटक कहते (दशजिचू.पृ. ३४३) • परे विग्गहविकथापसंगे सुसमत्थो वि ण तालणादिणा विहेडयति एवं अविहेडए। जो समर्थ होते हुए भी विग्रह और विकथा के प्रसंग में ताड़ना आदि के द्वारा दूसरों का तिरस्कार नहीं करता, वह अविहेटक कहलाता है। (दशअचू. पृ. २४०) असप्पलावि-असत्प्रलापी। असप्पलावी नाम जो असंतं उल्लावेति। जो असत् बात कहता है, वह असत्प्रलापी है। ___ (उचू. पृ. १९७) असम्भपलावि-असभ्य बोलने वाला। असम्भप्पलावी जो असम्भं उलावेति खरफरुस-अक्कोसादि असब्भं पलवइ। जो कर्कश, परुष, आक्रोश आदि असभ्य वचनों से बोलता है, वह असभ्यप्रलापी है। ___ (उचू.पृ. १९७) असमिक्खियपलावि-बिना विचारे बोलने वाला। असमिक्खियपलावी असमिक्खिउं उल्लविति, जं से मुहातो एति तं उल्लावेति। जो बिना सोचे-समझे बोलता है, जो मुंह में आता है ,वही बोल डालता है, वह असमीक्ष्यप्रलापी (उचू.पृ. १९७) अस्स-अश्व। अश्नाति अश्नुते वा अध्वानमिति अश्वः। जो मार्ग को खाता है, पार हो जाता है अथवा जो पथ में व्याप्त हो जाता है, वह अश्व __ (उचू.पृ. १२२) आठर-आतुर। सारीरमाणसेहिं दुक्खेहिं आतुरीभूतो अच्चत्थं तुरति आतुरो। शारीरिक और मानसिक दुःखों से दु:खी होकर जो अत्यंत त्वरा करता है, वह आतुर है। (आचू.पृ. १०८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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