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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ६०९ चतुर षोडशियों को तैयार किया। वे तीनों राजगृह में आईं और अपने आपको धर्मनिष्ठ श्राविकाओं के रूप में विख्यात कर दिया। प्रतिदिन मुनिदर्शन, धर्मश्रवण तथा अन्यान्य धार्मिक क्रियाकाण्डों को करने का प्रदर्शन कर जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। अभयकुमार भी उनकी धार्मिक क्रियाओं और तत्त्वज्ञान की प्रवणता को देखकर आकृष्ट हो गया। एक दिन अभयकुमार ने तीनों को भोजन के लिए आमन्त्रित किया। वे तीनों अभयकुमार के यहां गयीं। भोजन से निवृत्त होकर उन्होंने धार्मिक चर्चा की। उन तीनों ने भी अभयकुमार को अपने निवास-स्थान पर आमंत्रित किया। अभयकुमार ठीक समय पर उनके निवास स्थान पर पहुंचा। तीनों ने भाव भरा स्वागत किया, सुस्वादु भोजन करवाया और चन्द्रहार सुरा के मिश्रण से निष्पन्न मधुर पेय पिलाया। मदिरा के प्रभाव से अभयकुमार को तत्काल मूर्छा एवं नींद आने लगी। सुकोमल शय्या तैयार थी। अभयकुमार उस पर सो गया। वह बेसुध सा हो गया। गणिकाएं उसे रथ में डालकर अवन्ती ले गयीं। उसे चंडप्रद्योत को सौंप कर गणिकाएं अपने घर चली गयीं। अभयकुमार का बुद्धिबल पराजित हो गया। २. चंडप्रद्योत अभयकुमार चंडप्रद्योत से बदला लेना चाहता था। चंडप्रद्योत वीर था। उसके आमने-सामने लड़कर पराजित कर पाना असंभव था। अभयकुमार ने गुप्त योजना बनाई। वह बनिए का रूप बनाकर उज्जयिनी आया। दो सन्दर गणिकाएं उसके साथ में थीं। बाजार में एक विशाल मकान किराए पर लेकर वह वहीं रहने लगा। चंडप्रद्योत प्रतिदिन उसी मार्ग से आता-जाता था। उस समय वे स्त्रियां गवाक्ष में बैठकर हावभाव दिखाती थीं। चंडप्रद्योत उनके प्रति आकृष्ट हुआ और अपनी दासी के साथ प्रणय-प्रस्ताव भेजा। एक दो बार वह दासी निराश लौट आई। तीसरी बार गणिकाओं ने महाराज को अपने घर आने का निमन्त्रण दे दिया। इधर अभयकुमार ने एक व्यक्ति को अपना भाई बनाकर उसका नाम प्रद्योत रख दिया। उसने उसे पागल का अभिनय करने का प्रशिक्षण दिया। लोगों में यह प्रचारित कर दिया कि यह पागल है और सदा कहता है कि मैं प्रद्योत राजा हूं , मुझे जबरदस्ती पकड़कर ले जाया जा रहा है। निर्धारित दिन के अपराह्न में चंडप्रद्योत गणिका के द्वार पर आया। गणिका ने स्वागत किया। चंडप्रद्योत एक पलंग पर लेट गया। इतने में ही अभय के सुभटों ने उसे धर दबोचा। उसे रस्सी से बांधकर चार आदमी अपने कंधों पर उठाकर बीच बाजार से ले चले। उसका मुँह ढंका हुआ था। वह चिल्ला रहा था, 'मुझे बचाओ। मैं प्रद्योत राजा हूं। मुझे जबरदस्ती पकड़कर ले जा रहे हैं। लोग इस चिल्लाहट को सुनने के आदि से हो गए थे। किसी ने ध्यान नहीं दिया। उसे बंदी अवस्था में लाकर अभयकुमार ने श्रेणिक को सौंप दिया। प्रद्योत का शरीरबल परास्त हो गया। १. सूनि.५७। २. सूनि.५७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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