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परिशिष्ट ६ : कथाएं
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के बंधुमती नाम की एक पुत्री थी। भोजन कर चुकने पर एक महिला आई और कुमार के सिर पर आखे (अक्षत) डाले और कहा-'यह बंधुमती का पति है।' यह सुनकर वरधनु ने कहा-'इस मूर्ख बटुक के लिए क्यों अपने आपको नष्ट कर रहे हो?' उसने कहा-स्वामिन् ! एक बार नैमित्तिक ने हमें कहा था कि जिस व्यक्ति का वक्षस्थल पट्ट से आच्छादित होगा और जो अपने मित्र के साथ यहाँ भोजन करेगा, वही इस कन्या का पति होगा।' कुमार ने बंधुमती के साथ विवाह किया। दूसरे दिन वरधनु ने कुमार से कहा-'हमें बहुत दूर जाना है।' बंधुमती से प्रस्थान की बात कह वरधनु और कुमार दोनों वहाँ से चल पड़े।
चलते-चलते वे एक गाँव में आए। वरधनु पानी लेने गया। शीघ्र ही आकर उसने कहा'कुमार ! लोगों में यह जनश्रुति है कि राजा दीर्घ ने ब्रह्मदत्त के सारे मार्ग रोक लिए हैं। अब हम पकड़े जाएंगे अत: कुछ उपाय ढूंढ़ना चाहिए।' दोनों राजमार्ग को छोड़ उन्मार्ग से चले और एक भयंकर अटवी में पहुँचे। कुमार प्यास से व्याकुल हो गया। वह एक वटवृक्ष के नीचे बैठ गया। वरधन पानी की खोज में निकला। घमते-घूमते वह दर जा निकला। राजा दीर्घ के सिपाहियों ने उसे देख लिया। उन्होंने उसका पीछा किया। वह बहुत दूर चला गया। ज्यों-त्यों कुमार के पास आ उसने चलने का संकेत किया। कुमार ब्रह्मदत्त वहां से भागा। वह एक दुर्गम कान्तार में जा पहुंचा। भूख और प्यास से परिक्लान्त होते हुए तीन दिन तक चलकर उसने कान्तार को पार किया। वहाँ एक तापस को देखा। तापस के दर्शन मात्र से उसे जीवित रहने की आशा बंध गई। उसने पूछा'भगवन् ! आपका आश्रम कहाँ हैं?' तापस ने आश्रम का स्थान बताया और उसे कुलपति के पास ले गया। कुमार ने कुलपति को प्रणाम किया। कुलपति ने पूछा-'वत्स! यह अटवी अपाय-बहुल है?' तुम यहाँ कैसे आए?' कुमार ने उनसे सारी बात यथार्थ रूप से कही। कुलपति ने कहा-'वत्स! तुम मुझे अपने पिता का छोटा भाई मानो। यह आश्रम तुम्हारा ही है। तुम यहाँ सुखपूर्वक रहो।' कुमार वहाँ रहने लगा। काल बीतने पर वर्षा ऋतु आ गई। कुलपति ने कुमार को चतुर्वेद आदि महत्त्वपूर्ण सारी विद्याएं सिखाईं।
___ एक बार शरद ऋतु में तापस फल, कंद, मूल, कुसुम, लकड़ी आदि लाने के लिए अरण्य में गए। कुमार भी कुतूहलवश उनके साथ जाना चाहता था। कुलपति ने उसे रोका, पर वह नहीं माना और अरण्य में चला गया। वहाँ उसने अनेक सुन्दर वनखण्ड देखे। वहाँ के वृक्ष फल और पष्पों से समद्ध थे। उसने एक हाथी देखा और गले से भीषण गर्जारव किया। हाथी उसकी ओर दौड़ा। यह देख कुमार ने अपने उत्तरीय को गोल गेंद सा बना हाथी की ओर फेंका। तत्क्षण ही हाथी ने उस गेंद को अपनी सूंड से पकड़ कर आकाश में फेंक दिया। हाथी अत्यन्त कुपित हो गया। कुमार ने उसे छल से पकड़ लिया और अनेक प्रकार की क्रीड़ाओं से परिश्रान्त कर छोड़ दिया। कुमार उत्पथ से आश्रम की ओर चल पड़ा। वह दिग्मूढ़ हो गया था।
___ इधर-उधर घूमते-घूमते वह एक नगर में पहुंचा। वह नगर जीर्ण-शीर्ण हो चुका था। उसके केवल खण्डहर ही अवशेष थे। वह उन खण्डहरों को आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगा। देखतेदेखते उसकी आँखें एक ओर जा टिकीं। उसने एक खड्ग और चौड़े मुँह वाला बाँस का कुडंग
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