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________________ निर्युक्तिपंचक दुक्कडं' किया। गौतम का धैर्य टूट गया । भगवान् ने उसके मन की बात जान ली। भगवान् बोले'गौतम ! देवताओं के वचन प्रमाण हैं या जिनवर के ?' गौतम ने कहा- 'भगवन् ! जिनवर के वचन प्रमाण हैं ।' तब भगवान् ने चार कड़ों का दृष्टान्त दिया और कहा-' गौतम ! तुम्हारा मेरे ऊपर कंबल कड़ के समान स्नेहानुराग है इसीलिए तू मुझसे अत्यन्त निकट है, चिरसंसृष्ट है । गौतम ! प्रशस्त राग भी यथाख्यात चारित्र का नाश कर देता है । यथाख्यात चारित्र के बिना कैवल्य उत्पन्न नहीं होता । केवल सरागसंयमी साधुओं के लिए अप्रशस्त राग का निवारण करने के हेतु प्रशस्त राग अनुमत है इसलिए तुम विषाद मत करो। शीघ्र ही तू और मैं-दोनों ही एक अवस्था को प्राप्त होंगे। दोनों में कुछ भी भिन्नता नहीं रहेगी। तब भगवान् ने गौतम को सम्बोधित कर द्रुमपत्रक अध्ययन की प्रज्ञापना की। ५७८ ५४. हरिकेशबल मथुरा नगरी में शंख नामक युवराज प्रवचन सुनकर विरक्त हो गया । वह स्थविर साधुओं के पास महान् विभूति के साथ दीक्षित हुआ । कालक्रम से वह गीतार्थ बन गया। ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वह एक बार गजपुर - हस्तिनापुर पहुंचा और भिक्षा के लिए नगर की ओर निकला। वह घूमते हुए एक मार्ग के पास पहुंचा। वह मार्ग जलते अंगारे के समान अत्यन्त उष्ण था । वह मार्ग सदा प्रज्वलित रहता था अतः उसका नाम हुतवह' पड़ गया। जो भी उस मार्ग से गुजरता, वह भस्म हो जाता। मुनि मार्ग से अनभिज्ञ थे । उन्होंने गवाक्ष में बैठे एक व्यक्ति से मार्ग पूछा। ब्राह्मण ने कुतूहलवश उष्ण-मार्ग की ओर संकेतकर दिया। मुनि निश्छल भाव से उसी मार्ग पर चल पड़े। वे लब्धिसम्पन्न थे अत: उनके पादस्पर्श से मार्ग ठंडा हो गया। मुनि को अविचल भाव से आगे बढ़ते देख ब्राह्मण भी उस मार्ग पर चल पड़ा। मार्ग को बर्फ जैसा ठंडा देखकर उसने सोचा- 'यह मुनि काही प्रभाव है कि अग्नि जैसा मार्ग भी हिमस्पर्श वाला हो गया है।' उसे अपने अनुचित कृत्य पर पश्चात्ताप हुआ। वह उद्यान में स्थित मुनि के पास दौड़ा-दौड़ा आया और अपने पाप को प्रकट कर क्षमायाचना करते हुए मुनि से पूछा - 'मैं इस पापकर्म से कैसे मुक्त बनूं।' मुनि ने उसे संसार की अस्थिरता बताते हुए दीक्षा की प्रेरणा दी। मुनि के धार्मिक उपदेश को सुनकर उसके मन में विरक्ति के भाव उत्पन्न हुए। वह मुनि के पास प्रव्रजित हो गया। उसका नाम सोमदेव था । उसमें जाति और रूप का मद था। कालक्रम से जातिमद से स्तब्ध मरकर वह देव बना । अवधिज्ञान से उसने पूर्वभव का वृत्तान्त जाना। वह देवांगनाओं के साथ भोग भोगने लगा। भोग करते-करते उसके अनेक पल्य बीत गए । मृत गंगा नदी के तट पर हरिकेश का राजा बलकोट्ट नामक चांडाल रहता था । उसके दो पत्नियां थीं - गौरी और गांधारी । देव आयुष्य को पूरा कर सोमदेव का जीव जातिमद के परिपाक के कारण उस चांडाल के घर गौरी के गर्भ से उत्पन्न हुआ। गर्भकाल में गौरी ने स्वप्न में बसन्त मास की छटा देखी तथा अनेक पुष्पित एवं फलित आम्रवृक्ष देखे । स्वप्नपाठकों ने स्वप्न का फल १. उनि २७७-९९, उशांटी. प. ३२३-३३, उसुटी. प. १५३ - १५९ । २. सुखबोधा टीका में मार्ग का नाम हुताशन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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