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परिशिष्ट ६ : कथाएं
निह्नव है।' देवता वहां से आकर बोला- ' कायोत्सर्ग पूरा करें।' संघ ने कायोत्सर्ग पूरा किया। देवता बोला- 'तीर्थंकर ने कहा है कि संघ सत्यवादी है और गोष्ठामाहिल मिथ्यावादी है। यह सातवां निह्नव है ।' गोष्ठामाहिल ने यह सुना । वह तिलमिलाकर बोला- 'यह अल्पर्द्धिक देव है । इसमें वहां तक पहुंचने की शक्ति ही कहां है?' उसने देवता के कथन पर भी विश्वास नहीं किया। तब पुष्यमित्र आदि मुनियों ने गोष्ठामाहिल से कहा - 'मुने! संघ की बात आप मान लें अन्यथा आपको संघविच्छेद करना होगा ।' उसने उनकी बात स्वीकार नहीं की। संघ ने उससे बारह प्रकार का संभोग तोड़ दिया ।
४३. शिवभूति और बोटिकवाद ( वीर निर्वाण के ६०९ वर्ष पश्चात् )
रथवीरपुर नामक एक ग्राम में दीपक उद्यान था। वहां आचार्य आर्य कृष्ण समवसृत थे । ari शिवभूति नामक एक साहस्रिक मल्ल था । वह राजा के पास आजीविका हेतु आया। राजा ने कहा-'मैं पहले तुम्हारी परीक्षा लूंगा।' राजा ने मल्ल को कहा- 'तुम कृष्णा चतुर्दशी को श्मशान में देवी के मंदिर में बलि देकर आओ।' उसे शराब और पशु दे दिए। कुछ लोगों को राजा ने श्मशान में उसे डराने के लिए पहले ही भेज दिया। वह श्मशान जाकर देवी को बलि देकर पशुओं का मांस पकाकर स्वयं खाने लगा । राजपुरुष विविध प्रकार की ध्वनियों से भय-भैरव उत्पन्न करने लगे लेकिन भय तो दूर, उसको रोमाञ्च भी नहीं हुआ। राजपुरुषों ने राजा को सारा वृत्तान्त सुनाया। राजा ने उसे आजीविका दे दी।
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एक बार राजा ने अपने सेनानायक को आज्ञा दी कि मथुरा पर विजय प्राप्त करो। रक्षक पूरी सेना के साथ मथुरा को जीतने के लिए चले। कुछ दूर जाने पर सेनानायक ने कहा- 'हमने राजा से यह नहीं पूछा कि कौन सी मथुरा जीतनी है ? मथुरा दो हैं ( पांडु मथुरा तथा दक्षिण मधुरा) राजा ने भी इस ओर इंगित नहीं दिया !' वे भयभीत हो गए। तब शिवभूति ने कहा - ' हम एक साथ दोनों मथुरा जीतेंगे।' सैनिकों ने कहा- 'यह संभव नहीं है। दोनों मथुराएं दो ओर हैं। एक-एक को जीतने में बहुत समय लगेगा।'
शिवभूति ने कहा - ' जो दुर्जेय है, वह मुझे दे दो।' वह पांडु मथुरा की ओर गया। वहां वह प्रत्येक ग्रामवासियों को पीड़ित करने लगा और स्वयं दुर्ग को जीतकर वहां स्थित हो गया । वह मथुरा नगरी को जीतकर राजा के पास आया। राजा प्रसन्न होकर बोला- 'मैं तुम्हें क्या उपहार दूं?" उसने चिंतन कर कहा-'मैंने जो जीता है, वह सुविजित है । अब मैं वहां जो चाहूं करूं - ऐसा आप मुझे वरदान दें।' राजा ने स्वीकृति दे दी।
शिवभूति प्रतिदिन आधी रात तक बाहर घूमता रहता था। जब तक वह घर नहीं पहुंचता तब तक उसकी पत्नी न खाना खाती थी और न ही सोती थी । एक दिन वह अपनी सास से कलह करती हुई बोली- 'तुम्हारा पुत्र प्रतिदिन आधी रात को आता है, तब तक मैं भूख से व्याकुल होकर जागती रहती हूं।' सास ने बहू कहा - ' जब वह आए तब द्वार मत खोलना । आज रात को मैं जागूंगी।' रात को शिवभूति आया लेकिन पत्नी ने द्वार नहीं खोला। उसको तिरस्कृत करते हुए
मां
१. उनि. १७२/१०-१२, उशांटी. प. ९७२-७८, उसुटी. प. ७३ ७४ ।
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