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परिशिष्ट ६ : कथाएं
को अपने भवन में प्रवेश करते देखा । उसने मूलदेव से कहा- 'प्रतीत होता है कि मां ने अचल द्वारा प्रेषित सामग्री स्वीकार कर ली है अत: तुम कुछ क्षणों के लिए पलंग के नीचे छिप जाओ।' वह पलंग के नीचे छिप गया । अचल ने उसे पलंग के नीचे छिपते देख लिया । अचल पलंग पर बैठ * गया और देवदत्ता से बोला- 'स्नान की सामग्री तैयार करवाओ।' देवदत्ता ने कहा - 'ठीक है, तुम उठो और अपने कपड़े उतारो जिससे शरीर में तेलमर्दन किया जा सके। अचल बोला- 'आज मैंने स्वप्न देखा है कि कपड़े पहनकर ही मैंने तेलमर्दन करवाया है तथा पलंग पर आरूढ़ होकर ही स्नान किया है। इसलिए मेरे इस स्वप्न को सत्य करो।' देवदत्ता ने कहा - 'इससे यह बहुमूल्य रूई का गद्दा और तकिया नष्ट हो जाएगा। अचल ने कहा- 'मैं तुमको इससे भी अधिक विशिष्ट और कीमती बिछौना ला दूंगा । देवदत्ता की मां ने कहा- 'ठीक है, तुम्हारी इच्छा पूरी करो।' अचल ने वहीं पलंग पर बैठकर अंगमर्दन और उबटन करवाया तथा गर्म पानी से स्नान किया। नीचे बैठा मूलदेव पानी से भीग गया। तत्काल आयुध ग्रहण किए हुए अनेक पुरुष वहां आ गये । देवदत्ता की मां ने अचल को मूलदेव का संकेत कर दिया। उसने मूलदेव के बालों को पकड़कर बाहर निकाला और कहा'अरे ! बोल इस समय तेरा कोई शरण है?' मूलदेव ने अपने चारों ओर देखा । तीक्ष्ण तलवारों को हाथ में लिए अनेक मनुष्य उसे घेरे हुए थे । उसने सोचा- 'मैं आज इन लोगों से बच नहीं सकता अतः मुझे वैर-निर्यातन-वैर-शुद्धि कर लेनी चाहिए। मैं इस समय निःशस्त्र हूं अतः यह पौरुष दिखाने का अवसर नहीं है।' मूलदेव ने चिंतन करके कहा- 'जो तुम्हें अच्छा लगे वही करो।' अचल ने सोचा-आकृति से तो यह कोई उत्तम पुरुष प्रतीत होता है। संसार में महापुरुष भी व्यसन से आक्रान्त हो जाते हैं। कहा भी है- 'संसार में कौन ऐसा व्यक्ति है, जो सदा सुखी है, किस व्यक्ति के पास लक्ष्मी स्थिर रही है ? कौन ऐसा व्यक्ति है, जिससे स्खलना नहीं होती? कौन ऐसा है जो विधि - भाग्य के द्वारा दुःखी या कदर्थित न हुआ हो?" अचल ने कहा- -' मूलदेव ! मैं तुम्हें इस अवस्था में मुक्त कर रहा हूँ। भाग्यवश मैं भी कभी ऐसी विपत्ति में फंस जाऊं तो तुम भी ऐसा ही बर्ताव करना।'
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तब मूलदेव दुःखी मन से नगर के बाहर चला गया। उसने सोचा, ओह ! किस प्रकार मैं अचल से छला गया हूं। उसने सरोवर में स्नान किया और कुछ खाया-पीया। मूलदेव ने चिंतन किया कि मैं विदेश जाऊं। वहां जाकर इस अपमान का प्रतिकार करूं । वह वेन्नातट की ओर चला । ग्राम, नगर आदि के मध्य से जाते हुए वह बारह योजन लम्बी अटवी के पास पहुंचा। उसने सोचा कि यदि चलते हुए कोई वाग्मित्र मिल जाए तो सुखपूर्वक अटवी पार हो जाए। थोड़ी देर में वहां विशिष्ट आकृति वाला, पाथेय हाथ में लिए हुए 'टक्क' ब्राह्मण मिला। मूलदेव ने पूछा - ' अरे ब्राह्मण ! कितनी दूर जाओगे?' उसने कहा- 'अटवी के परे वीरनिधान नामक गांव है, वहां जाऊंगा।' ब्राह्मण ने पूछा- 'तुम कहां जाओगे ?' मूलदेव ने कहा- 'मैं वेन्नातट पर जाऊंगा।' ब्राह्मण ने कहा- 'आओ, हम दोनों साथ चलें ।' मध्याह्न के समय चलते हुए उन्होंने एक सरोवर देखा । टक्क ब्राह्मण ने कहा——यहां क्षणभर विश्राम कर लें।' वे पानी के पास गए और हाथ-पैर धोए । मूलदेव नदी के किनारे स्थित वृक्ष की छाया में बैठ गया। टक्क ब्राह्मण ने अपना पाथेय का थैला खोला और सत्तू को पात्र में डाला । उसको जल में घोलकर वह खाने लगा। मूलदेव ने सोचा- 'यह ब्राह्मण जाति
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