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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण इस प्रकार समाधि शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता था। कहा जा सकता है कि निक्षेपों के माध्यम से हम उस शब्द का इतिहास जान सकते हैं। धवला में निक्षेप की उपयोगिता के चार कोण बताए हैं १. पर्यायार्थिक दृष्टि वाला अव्युत्पन्न श्रोता है तो अप्रकृत अर्थ का निराकरण करने के लिए निक्षेप करना चाहिए। २. द्रव्यार्थिक दृष्टि वाले श्रोता के लिए प्रकृत अर्थ का निरूपण करने के लिए निक्षेप करना चाहिए। ३. व्युत्पन्न होने पर भी यदि संदिग्ध है तो उसके संदेह का निराकरण करने के लिए निक्षेप करना चाहिए। ४. यदि श्रोता विपर्यस्त है, तो तत्त्वार्थ-विनिश्चय के लिए निक्षेप करना चाहिए। निक्षेप वस्तुत: अनुयोग का ही एक प्रकार है, जिसके अंतर्गत उपक्रम, अनुगम और नय का भी समावेश किया गया है। उपोद्घातनियुक्ति में १२ प्रकार से किसी भी विषय की व्याख्या की जाती है, उसमें निक्षेप को प्रथम स्थान प्राप्त है। यद्यपि निक्षेप अतिप्राचीन व्याख्या पद्धति है क्योंकि भगवती जैसे आगम ग्रंथ में इस पद्धति का उपयोग हुआ है पर नियुक्तिकार ने शाब्दिक ज्ञान कराने हेतु इस पद्धति का बहुलता से उपयोग किया है। एक ही प्राकृत शब्द के कई संस्कृत रूप संभव हैं अत: निक्षेप-पद्धति के द्वारा नियुक्तिकार उस शब्द के सभी अप्रासंगिक अर्थों का ज्ञान कराकर प्रासंगिक अर्थ का ज्ञान कराते सामान्यतया आवश्यकता के अनुसार अनेक निक्षेप किए जा सकते हैं लेकिन इसके चार भेद प्रसिद्ध हैं—१. नाम २. स्थापना ३. द्रव्य ४. भाव । अनुयोगद्वार में मुख्यत: चार प्रकार के निक्षेपों की चर्चा है पर नियुक्ति-साहित्य में उत्तर, समय, स्थान आदि शब्दों के उत्कृष्टत: १५ निक्षेप भी किए गए हैं। शान्त्याचार्य के अनुसार इन चार निक्षेपों में सभी निक्षेपों का समावेश हो जाता है। इनसे अधिक निक्षेप करने के दो प्रयोजन हैं १. शिक्षार्थी की बुद्धि को व्युत्पन्न करना। २. सब वस्तुओं के सामान्य-विशेष और उभयात्मक अर्थ का प्रतिपादन करना। चार निक्षेपों में प्रथम दो-नाम और स्थापना का उपयोग एवं व्याख्या बहुत सीमित है किन्तु द्रव्य और भाव निक्षेप की विस्तृत व्याख्या मिलती है। सामान्यतया शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु का वाचक होता है। शब्द के इस स्वरूप को प्रकट करने के लिए ही नाम निक्षेप की कल्पना की गयी। नाम निक्षेप जाति, गुण, द्रव्य और किया से निरपेक्ष होता है। यह निक्षेप शुद्ध भाषात्मक पक्ष है। कल्पना के माध्यम से किसी आकार में वस्तु का आरोप करना स्थापना निक्षेप है। ये दोनों निक्षेप वास्तविक अर्थ से शून्य होते हैं। वस्तु की त्रैकालिक स्थिति को प्रकट करने वाला द्रव्य निक्षेप है अत: इसकी परिधि बहत व्यापक है। भाव निक्षेप जैन साधना-पद्धति का १. धवला १/१, १, १/३०,३१; अवगतनिवारणटुं, पयदस्स परूवणानिमित्तं च । संसयविणासणटुं, तच्चत्थवधारणटुं च।। २. बृभा १४९; निक्खेवेगट्ठ-निरुत्त-विहि-पवित्ती य केण वा कस्स । तद्दार-भेय-लक्खण, तदरिहपरिसा य सुत्तत्थो।। ३. आनि ४; जत्थ य ज जाणेज्जा, निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं । जत्थ वि य ण जाणेज्जा, चउक्कगं निक्खिवे तत्थ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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