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________________ ४६४ नियुक्तिपंचक पणय-अनन्तकाय वनस्पति, मराली-दुष्ट घोड़ा, अविनीत बैल । कर्दम, काई। (आनि १४१) (उनि ६५) पतिरिक्क-शून्य एकांत । (दशनि ३४७) मीरा-बड़ा चूल्हा। (सूनि ६४) पाण-चण्डाल । (उनि ३१६) मो-पादपूरक अव्यय । (दशनि १२३/६) पारासर-ब्राह्मण। (उनि ११५) र-निश्चयार्थक अव्यय। (दशनि १२३/१०) पिउर-खाद्य पदार्थ विशेष । (उनि १७२/३) रुक्ख-वृक्ष । (उनि १४६, आनि ८०) पुष्णपत्त-खुशी से हृत वस्त्र। (उनि ३४२) लिड-लींड। (दशनि ८४) पोंड-फल। (उनि १५२) लुक्स'-वृक्ष । (उनि १३८) पोंग-कपास का सूत। (उनि ३०५, सूनि ३) वग्धारिय--बघारा हुआ। (दनि ११६) पोरसार--पुरुष का मांस खाने वत्ता--सूत्रवेष्टन यंत्र। (सूनि २०१) ___ वाला। (उनि ३६४) विडिमी-वृक्ष। (दशनि ३२) फिफ्फिस-आंतस्थित मांस विशेष । (सूनि ७१) विडि-छोटा तालाब । (उनि १३८) फंग-करीषाग्नि । (दशनि १५५) वोलंत-जाते हुए। (उनि ४०७) फुफ्फुस-उदरवर्ती आंत विशेष । (सूनि ७१) संगार-संकेत। (सूनि ३२) बइल्ल-बैल। (दनि ९३) संघडिय--मित्र । (उनि ३५६) बाहिर-चंडाल की जाति । सन्न-मल। (दशनि ६३) बोड-खण्डित घट। (दनि १४) साल-शाखा। (उनि ३२) बोरिय-जैन सम्प्रदाय विशेष । साह-कहना। (दशनि ८१) (उनि १६२/१५) साह-अंश । (उनि १५८) मंडीगाडी। (दनि ९३) सुहम-फूल । (दशनि ३३) माणिय-अनंतकाय वनस्पति। (आनि १४१) सेट्टि-सेठ । (उनि १००) मेर-निविष सर्प। (उनि ३१९) सेहि-शक्ष साध्वी । (उनि १३९) मइलित--मैला, गंदा । (उनि १०६) हर--अनन्तकाय वनस्पति । (आनि १४१) माल्ल-कर्म। (दनि १२५) हरतणु-पृथ्वी को भेदकर निकलने वाले मग्गत-पीछे। (दनि १०६) जलबिंदु । (आनि १०८) मल्लग--पात्र विशेष । (आनि ५९) हरिमंथ--चना! (दशनि २३०) १,२. पाइयसद्दमहण्णवो में इसे देशी नहीं माना है लेकिन यह देशी होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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