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उत्तराध्ययन पर कोई भाष्य उपलब्ध नहीं है । केवल क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय अध्ययन के प्रसंग में निर्ग्रन्थ एवं उसके भेदों की व्याख्या हेतु कुछ भाष्य गाथाएं प्राप्त होती हैं । ये भाष्य गाथाएं किसके द्वारा लिखी गयीं इसकी कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है । संभव लगता है कि व्याख्या के प्रसंग 'अन्य भाष्य गाथाओं से ये गाथाएं यहां उद्धृत कर दी गयी हों ।
हस्त आदर्शों एवं शांत्याचार्य की टीका में प्रकाशित भाष्य गाथाओं के क्रम में थोड़ा अन्तर है । हमने हस्त आदर्शों के आधार पर गाथाओं का क्रम रखा है । उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य की प्रकाशित टीका में २५७-५९ इन तीन पत्रों में ये गाथाएं मिलती हैं ।
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उत्तराध्ययन भाष्य
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पुलाग - बकुस - कुसीला, णिग्गंथ - सिणायगा य एएसि पंचह वि, होइ विभासा इमा
होइ पुलागो दुविहो, लद्धिपुलागो तहेव लद्धि लागो संघाइकज्ज इतरो तु
णाणे दंसण चरणे, लिंगे अहासुहुमगे य णाणे दंसण चरणे, तेसि तु विराहण
णायव्वा । कमसो' ॥
इयरो य ।
पंचविहो ||
बोधव्वे | असारो ॥
लिंगपुलागो अन्नं, णिक्कारणतो करेति मणसा अकप्पियाई, णिसेवओ
सारीरं उवकरणे, क्लित्थाणि धरे,
अह ।
आभोगमणाभोगे, संवुड डे दुविहो उ बाउसो खलु, पंचविहो होति णायव्वो ॥ आभोगो जाणतो, करेति दोसं तहा अणाभोगो । मूलुत्तरेह संवुड, विवरीय असंवुडो होति ॥ अच्छि मुहमज्जमाणो, होइ अहासुहुमओ तहा बउसो । पडिसेवणाकसाए, होइ कुसीलो दुहा एसो ॥
जो लिंगं । होतऽहासुमो ||
बाउसियत्तं दुहा समवखायं । दे य सव्वसरीरम्म ||
१. इस गाथा से पहले शान्त्याचार्य की मुद्रित टीका में निम्न गाथा अतिरिक्त मिलती हैतत्थ नियंठ पुलातो, बकुस कुसीलो नियंठ पहातो य । तत्थ पुलाओ दुविहो, आसेवण लद्धितो चेव ।।
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