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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण हैं तब 'जेण' और 'जावंति' द्वार का स्पष्टीकरण करने वाली गाथाएं भी नियुक्तिकार द्वारा रचित होनी चाहिए। चूर्णि में निर्दिष्ट न होने पर भी हमने इनको नियुक्ति-गाथा के क्रम में रखा है। ४. दशवैकालिकनियुक्ति की अनेक गाथाएं चूर्णि में गाथा रूप में निर्दिष्ट नहीं हैं किन्तु उनका भावार्थ चूर्णि में मिलता है। ऐसी गाथाओं के बारे में दो विकल्प उभरकर सामने आते हैं (क) चूर्णि की व्याख्या के आधार पर बाद के आचार्यों ने गाथा की रचना कर दी हो। (ख) अथवा लिपिकार द्वारा चूर्णि में गाथा का संकेत छूट गया हो। उदाहरण स्वरूप गा. ४०, ४२ से ४५ इन पांचों गाथाओं का चूर्णि में भावार्थ एवं व्याख्या है पर गाथा का संकेत नहीं है किन्तु ये गाथाएं नियुक्ति की होनी चाहिए क्योंकि इनमें सूत्रगत शब्दों की व्याख्या है। इसके अतिरिक्त अगस्त्यसिंह चूर्णि पृ. ११ पर २० वीं गाथा की व्याख्या में कहा है कि संयम और तप नियुक्ति विशेष से कहे जाएंगे। इन गाथाओं में धर्म, संयम एवं तप की व्याख्या है। गा. ३९ में लौकिक धर्म का निरूपण है अत: लोकोत्तर धर्म की व्याख्या करने वाली ४० वीं गाथा भी नियुक्ति की होनी चाहिए। इसी प्रकार ५०' से ८५ तक की ३६ गाथाओं का भी चूर्णि में भावार्थ है पर गाथाएं नहीं हैं। हमने विषय की संबद्धता एवं टीकाकार की व्याख्या के आधार पर इनको नियुक्तिगाथा के क्रम में रखा है। ५. कहीं-कहीं किसी गाथा की व्याख्या चूर्णि एवं टीका दोनों में नहीं मिलती लेकिन हस्तप्रतियों में वह गाथा मिलती है। ऐसी गाथाओं को हमने प्राय: नियुक्तिगाथा के क्रम में नहीं जोड़ा है क्योंकि हस्त आदर्शों में लिपिकारों द्वारा प्रसंगवश नियुक्ति-गाथा के साथ अन्य अनेक गाथाएं भी लिख दी गयी हैं। जैसे—देखें गा. दशनि २२१/१, २७४/१, उनि २८/१, दनि ३३/१,२,४४/१, ६४/१ आदि । लेकिन कहीं-कहीं व्याख्याकारों द्वारा व्याख्यात न होने पर भी आदर्शगत गाथा को भाषा-शैली एवं विषय की संबद्धता की दृष्टि से नियुक्ति-गाथा के क्रम में रखा है। जैसे—दशनि १४५, २८५, उनि ४८, ३२०, आनि २९४, दनि २३ आदि। कहीं-कहीं कोई गाथा एक ही प्रति में मिली है तो भी विषय की संबद्धता के आधार पर उसे नियुक्ति-गाथा के क्रम में जोड़ दिया है। जैसे—दशनि गा ३३९ केवल ब प्रति में मिलती है। ६. कहीं-कहीं भाष्य या अन्य व्याख्याग्रंथों की गाथाएं भी नियुक्ति गाथाओं के साथ मिल गयी हैं। लिपिकर्ताओं द्वारा स्मृति के लिए हासिए में प्रसंगवश विषय से संबद्ध गाथाएं लिख दी गयीं जो बाद में मूलग्रंथ के साथ मिल गयीं। अनेक स्थलों पर ऐसी गाथाओं को हमने नियुक्ति के क्रमांक में नहीं जोड़ा है। जैसे दशनि ९/१. १५७/१। इसी प्रकार दशनि २५/१. २ ये दोनों गाथाएं विशेषावश्यक भाष्य की हैं किन्तु टीका में इनके लिए 'आह नियुक्तिकारः' का उल्लेख है। इस उल्लेख से संभव लगता है कि हरिभद्र के समय तक ये गाथाएं नियुक्तिगाथा के रूप में प्रसिद्ध हो गयी थीं लेकिन हमने इनको नियुक्तिगाथा के क्रम में नहीं रखा है। चूर्णि में भी ये गाथाएं नियुक्तिगाथा के रूप में निर्दिष्ट नहीं हैं। ७. कहीं-कहीं चूर्णि में गाथा का उल्लेख एवं व्याख्या नहीं है लेकिन टीकाकार ने उन गाथाओं को 'आह नियुक्तिकार:' 'अधुना नियुक्तिकारो', 'नियुक्तिकृदाह', 'चोक्तं नियुक्तिकारेण' आदि उल्लेखपूर्वक नियुक्तिगाथा रूप में स्वीकृत किया है। संभव है कि टीकाकार के समय तक ये गाथाएं नियुक्ति-गाथा के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं अत: टीकाकार को प्रमाण मानकर हमने ऐसी गाथाओं को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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