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नियुक्तिपंचक
१०९. जिस क्षेत्र में जो मार्ग है, वह क्षेत्रमार्ग है। जिस काल में जो मार्ग है, वह कालमार्ग है । भावमार्ग के दो प्रकार हैं-प्रशस्तभावमार्ग, अप्रशस्तभावमार्ग। दोनों के तीन-तीन प्रकार हैं। प्रशस्तभावमार्ग के तीन प्रकार सम्यकज्ञान, सम्यगदर्शन और सम्यग्चारित्र । अप्रशस्तभाव मार्ग के तीन प्रकार -मिथ्यात्व, अविरति तथा अज्ञान ।
११०. इन दोनों मार्गों का विनिश्चय फल से होता है । प्रशस्त मार्ग सुगतिफल वाला होता है और अप्रशस्त मार्ग दुर्गतिफल वाला। यहां सुगतिफल वाला मार्ग प्रासंगिक है।
१११. दुर्गतिफलवादियों के तीन सौ तिरसठ भेद हैं। (क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४ अज्ञानवादियों के ६७ तथा वैनयिकवादियों के ३२।५) द्रव्य मार्ग के चार विकल्प
(१) क्षेम-क्षेमरूप-जैसे-चोर, सिंह आदि के उपद्रव रहित तथा वृक्ष आदि से
आच्छन्न मार्ग। (२) क्षेम-अक्षेमरूप-जैसे-उपद्रवरहित किन्तु पथरीला, कण्टकाकीर्ण मार्ग । (३) अक्षेम-क्षेमरूप-जैसे-चोर आदि के भय से युक्त किन्तु सम मार्ग। (४) अक्षेम-अक्षेमरूप-जैसे-सिंह, चोर आदि के उपद्रव से युक्त तथा पथरीला और
ऊबड़-खाबड़ मार्ग। भावमार्ग के चार विकल्पक्षेम-क्षेमरूप--ज्ञान आदि से समन्वित मुनि वेशधारी साधु । क्षेम-अक्षेमरूप-भावसाधु द्रव्यलिंग से रहित । अक्षेम-क्षेमरूप-निह्नव ।
अक्षेम-अक्षेमरूप-परतीथिक, गृहस्थ आदि ।
११२. ज्ञान, दर्शन और चारित्र-यह तीन प्रकार का भावमार्ग सम्यगदृष्टि व्यक्तियों द्वारा आचीर्ण है। चरक, परिव्राजक आदि द्वारा आचीर्ण मार्ग मिथ्यात्व मार्ग है, अप्रशस्त मार्ग है।
११३. जो व्यक्ति ऋद्धि, रस, साता-इन तीन गौरवों से भारीकर्मा हैं, जो षड्जीवनिकाय की घात में निरत हैं, वे कुमार्ग का उपदेश देते हैं और उसी कुमार्ग का आश्रय लेते हैं।
११४. तप और संयम में प्रधान तथा गुणधारी मुनि जो सद्भाव-यथार्थ का निरूपण करते हैं, वह जगत् के सभी प्राणियों के लिए हितकारी है, वही सम्यक प्रणीत मार्ग है।
११५. मोक्षमार्ग के ये तेरह एकार्थक शब्द हैं
१. पंथ-सम्यकत्व की प्राप्ति। २. न्याय—सम्यक् चारित्र की प्राप्ति । ३. मार्ग-सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति । ४. विधि-सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन की युगपद् प्राप्ति ।
५. धति-सम्यग्दर्शन के होने पर सम्यगचारित्र की प्राप्ति । १. असियसयं किरियाणं, अकिरियवाईण होई चुलसीई ।
अण्णाणिय सत्तट्ठी, वेणइयाणं च बत्तीसं ॥ (सूटी. पृ. १३१)
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