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नियुक्तिपंचक ८०. वैतरणी नरकपाल नारकों को वैतरणी नदी में बहाते हैं। वह नदी पीब, रुधिर, केश और हड्डियों से भरी रहती है। उसमें खारा-गरम पानी बहता है। वह कलकलायमान जलवाली महाभयानक नदी होती है।
८१. खरस्वर पग्माधामिक देव नारकों के शरीर को करवतों से चीरते हैं तथा नारकों को परशुओं से परस्पर छीलने के लिए प्रताड़ित करते हैं। ये उनको (वज्रमय भीषण कंटकों से समाकीर्ण) शाल्मली वृक्ष पर चढ़ने के लिए मजबूर करते हैं।
८२. जैसे पशुवध के समय पशु भयभीत होकर दौड़ते हैं तब बधक उनको वहीं रोक लेते है वैसे ही भयभीत होकर पलायन करने वाले नारकों को महाघोष नरकपाल चारों ओर से घेर कर वहीं रोक लेते हैं । छठा अध्ययन : महावीर-स्तुति
८३. महत् शब्द प्राधान्य अर्थ में है। इसके छह निक्षेप हैं--नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । वीर शब्द के चार निक्षेप हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव।
८४. 'स्तुति' शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । आगन्तुक की स्तवना, कटक, केयूर, चन्दन, माला आदि भूषणों से की जाने वाली स्तवना द्रव्यस्तुति है। विद्यमान गुणों का कीर्तन करना भावस्तुति है।
८५. जम्बू ने आर्य सुधर्मा से भगवान् महावीर के गुणों के विषय में पूछा तब आर्य सुधर्मा ने महावीर के गुण बताए और कहा-महात्मा महावीर ने जिस प्रकार संसार पर विजय प्राप्त की तुम भी उसी प्रकार प्रयत्न करो। सातवां अध्ययन : कुशीलपरिभाषित
५६. 'शील' शब्द के बार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्यशील-- फलनिरपेक्ष होकर आदतन उन-उन क्रियाओं में प्रवर्तन करना, जैसे-प्रावरण का प्रयोजन न होने पर
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१. महावीरस्तव इत्यत्र यो महच्छब्दः स प्राधान्ये __ वर्तमानो गृहीतः । (मूटी. पृ ९५) २. द्रव्यमहत्-यह सचित्त, अचित्त एवं मिश्र तीन प्रकार का होता है । सचित्त में तीर्थंकर, अचित्त में वैडूर्य आदि मणि तथा मिश्र में अलंकृत विभूषित तीर्थकर ।। क्षेत्रमहत--सिद्धिक्षेत्र । धर्माचरण की अपेक्षा से महाविदेह तथा सुखों की दृष्टि से देवकु रु. आदि क्षेत्र प्रधान होते हैं। कालमहत्-काल की दृष्टि से एकान्त सुषमा आदि काल प्रधान होता है। भावमहत्-पांचों भावों में क्षायिकभाव
प्रधान होता है। ३. १. द्रव्यवीर--संग्राम में शूर अथवा वीर्यवान् द्रव्य । तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि का बल अथवा विष आदि द्रव्यों का सामर्थ्य । २. क्षेत्रवीर-जो जिस क्षेत्र में असाधारण काम करने वाला है वह तथा जो जिस क्षेत्र में वीर माना जाता है। ३. कालवीर-जिस काल में जो वीर होता है, वह । ४. भाववीर-क्षायिक वीर्य सम्पन्न व्यक्ति जो कषायों एवं उपसर्गों से अपराजित होता
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