SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रम - - * ; ११-१३. १४. ४०. मंगलाचरण तथा सूत्रकृतांग की नियुक्ति- पहला अध्ययन : समय कथन की प्रतिज्ञा। २९-३१. प्रथम अध्ययन के उद्देशकों की विषय-वस्तु सूत्रकृतांग के एकार्थक । का संकेत। सूत्र शब्द के निक्षेप तथा उसके भेद- ३२. समय शब्द के बारह निक्षेप । प्रभेद । ३३. चार्वाक दर्शन का निरूपण । करण, कारक और कृत शब्द के निक्षेप का ३४. अकारकवाद का निराकरण । निर्देश । ३५. आत्मा को सक्रिय मानने पर उठने वाली द्रव्य करण के भेद-प्रभेद । आशंकाएं। मूलकरण और उत्तरकरण का स्वरूप । दूसरा अध्ययन ! वैतालीय प्रयोगकरण का स्वरूप। ३६,३७ द्वितीय अध्ययन के उद्देशकों की विषयविस्रसाकरण का स्वरूप । वस्तु का संकेत । क्षेत्रकरण का स्वरूप। ३८. विदारक, विदारण तथा विदारणीय शब्द कालकरण का स्वरूप । के निक्षेपों का मात्र संकेत। प्रकारान्तर से करण के ११ भेद । ३९. द्रव्य और भाव विदारण का स्वरूप । भावकरण का स्वरूप । बैतालीय का निरुक्त तथा उक्त छंद का उल्लेख । विस्रसाकरण का स्वरूप । ४१. प्रस्तुत अध्ययन की रचना का इतिहास । श्रतज्ञान के आधार पर मूलकरण का द्रव्यनिद्रा, भावनिद्रा तथा भावसंबोध का निरूपण। स्वरूप। कर्मद्वार के आधार पर ग्रन्थ-रचना का ४१ संयम, तप आदि के अभिमान का तथा आठ प्रतिपादन। मदस्थानों के परिहार का निर्देश । सूत्रकृत नाम की सार्थकता। तीसरा अध्ययन : उपसर्ग-परिज्ञा सूत्रकृतांग तीर्थंकर द्वारा वाग्योग से ४५,४६. तीसरे अध्ययन के उद्देशकों की विषय-वस्तु भाषित एवं गणधरों द्वारा वाग्योग से का कथन। कृत। उपसर्ग शब्द के छह निक्षेप तथा द्रव्य सूत्रकृत का निरुक्त । उपसर्ग के भेद । सूत्र शब्द का निरुक्त। ४८-५०. क्षेत्र, काल, भाव तथा द्रव्य के भेद-प्रभेद । श्रुतस्कन्ध तथा अध्ययनों की संख्या का र उदासीनता से किए जाने वाले हिंसा आदि निर्देश। कार्य की समीक्षा में तीन दृष्टांत । गाथा, श्रुत तथा स्कन्ध शब्द के निक्षेप । चौथा अध्ययन : स्त्री-परिज्ञा सूत्रकृतांग के अध्ययन तथा उनकी विषय चौथे अध्ययन के उद्देशकों की विषय-वस्तु वस्तु का निर्देश । का संकेत। २२. २३. २४-२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy