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बाचारान नियुक्ति
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३०४. इस प्रकार वीरों में श्रेष्ठ, महान् प्रभावी महावीर (वर्द्धमान) ने भाव उपधान का सम्यक् प्रकार से आचरण किया । उसका अनुसरण कर धीर व्यक्ति शिव तथा अचल निर्वाण को प्राप्त कर लेते हैं ।
आचाराग्र : ( आचार-चूला )
३०५. (अग्रशद के चार निक्षेप है-नाम अग्र स्थापना अग्र, द्रव्य अग्र और भाव अग्र । ) द्रव्य अग्र के आठ प्रकार हैं
(१) द्रव्य अन
(२) अवगाहन अग्र (३) आदेश अग्र
भाव अग्र के तीन प्रकार है-(१) प्रधान अन
(४) काल अग्र
(५) क्रम अग्र
(६) गणन अग्र
३०६. प्रस्तुत में उपकार अन उससे संबद्ध है। जैस वृक्ष और पवस
(२) बहुक अग्र
(३) उपकार अग्र
का प्रसंग है। ये अध्ययन आचारांग के उत्तरवर्ती अर्थात् अग्र होते हैं, वैसे ही आचारांग के ये अन्न हैं ।
३०७. स्थविरों ने शिष्यों पर अनुग्रह कर उनका हित-संपादन करने तथा तथ्यों की स्पष्ट अभिव्यक्ति करने के लिए इसका नियूहण किया है। आचारांग का समस्त अर्थ आचाराय ( आचारचूला) में विस्तार से निरूपित है।
(७) संचय अग्र
(८) भाव अग्र
३०८-३१२. आचारांग के दूसरे अध्ययन (लोक विजय ) के पांचवे उद्देशक से तथा आठवें अध्ययन (विमोक्ष) के दूसरे उद्देशक सपिडेपणा, शय्या, वस्त्रेषणा, पार्श्वषणा तथा अवग्रह प्रतिमा निर्यूढ है | पांचव अध्ययन लोकसार के चौथ उद्देशक से 'ईर्या' तथा छठे अध्ययन (धुत) के पांचवें उद्देशक से भापाजात का निण किया गया है। महापरिक्षा अध्ययन से सात सप्तकक, शस्त्र परिक्षा से भावना और धुत अध्ययन के दूसरे और फोन उसे विभुषित अध्ययन निर्यूड है। आचारप्रकल्प - निशीष का निर्यण प्रत्याख्यान का वृताय वस्तु क 'आधार' नाम वाले बीसवें प्राभूत से हुआ है। इस प्रकार आचारांग के अध्ययनात आचारचूला का संग्रहण हुआ है ।
३१२. शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में दंडनिक्षेप संयम का अव्यक्त प्रतिपादन हुआ है। उसी संयम को विभक्त कर आठ अध्ययनों में अनेक प्रकार से यहां बतलाया
३१३, ३१४. संयम के विभिन्न वर्गीकरण :-- • एकविध संयम वरात की निवृत्ति ।
• दो प्रकार का संयम-अध्यात्म तथा बाह्य ।
जाता है ।
• तीन प्रकार का संयम – मनःसंयम, वचनसंयम, कायसंयम ।
• चार प्रकार का संयम ---चार याम ।
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• पांच प्रकार का संयम -पांच महाव्रत ।
● छह प्रकार का संयम पांच महाव्रत तथा रात्रिभोजन-विरमण व्रत ।
इस प्रकार आचार संयम
विभक्त होता हुआ अठारह हजार शीलांग परिमाण वाला हो
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