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नियुक्तिपंचक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अनुभव संज्ञा के १६ भेदों का उल्लेख मनोविज्ञान की मौलिक मनोवृत्तियों के साथ तुलनीय है साथ ही मानवविज्ञान के क्षेत्र में नयी दृष्टियां उद्घाटित करने वाला है। दिशा के भेद-प्रभेदों एवं उसके उद्भव का इतना विस्तृत वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है। भौगोलिक दृष्टि से यह पूरा वर्णन अनेक नए रहस्यों को खोलने वाला है। जातिस्मृति उत्पन्न होने के कारणों का उल्लेख परामनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। नियुक्तिकार ने इस अध्ययन में पृथ्वी आदि षड्जीवनिकायों के निक्षेप, प्ररूपणा, लक्षण, परिमाण, उपभोग, शस्त्र, वेदना, वध और उसकी निवृत्ति आदि ९ द्वारों का विस्तृत वर्णन किया है। इनमें प्ररूपणा, लक्षण, परिमाण, उपभोग, वेदना आदि का वर्णन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आगे भूमिका में हम इस बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे। षड्जीवनिकाय का जितना कमबद्ध और व्यवस्थित वर्णन आचारांगनियुक्ति में हुआ है, उतना अन्य ग्रंथों में नहीं मिलता। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह वर्णन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
द्वितीय उद्देशक में लोक और विजय के निक्षेप के पश्चात् मूलसूत्र में आए 'जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे' सूक्त में आए गुण, मूल और ठाण-इन तीन शब्दों का निक्षेप के माध्यम से विस्तृत वर्णन हुआ है। संसार का मूल है कर्म, उसकी उत्पत्ति कषाय से होती है। नियुक्तिकार ने दस प्रकार के निक्षेपों के माध्यम से कर्म का विशद विवेचन किया है।
तीसरे शीतोष्णीय अध्ययन में शीत और उष्ण की विविध दृष्टियों से व्याख्या की है तथा बाईस परीषहों में कितने शीत परीषह और कितने उष्ण इसका उल्लेख किया है। चौथे सम्यक्त्व अध्ययन में गुणश्रेणी-विकास की अवस्थाओं का वर्णन तात्त्विक एवं सैद्धान्तिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ऐतिहासिक दृष्टि से गुणश्रेणी-विकास का प्राचीनतम वर्णन आचारांगनियुक्ति में मिलता है। अहिंसा का सार्वभौम एवं सार्वकालिक महत्त्व बताने के बाद नियुक्तिकार ने रोहगुप्त की कथा का संकेत किया है, जिसमें अनेक भिक्षुओं से समस्यापूर्ति करवाई गयी है। नियुक्तिकार ने आसक्त और अनासक्त के कर्मबंध की प्रक्रिया को बहुत सुंदर एवं व्यावहारिक रूपक से समझाया है।
___ पांचवें लोकसार नामक अध्ययन की प्रारम्भिक नियुक्ति-गाथाओं में उद्देशकों की विषय-वस्तु का निरूपण है। निर्यक्तिकार के अनुसार आदानपद से इस अध्ययन का नाम आवंति तथा गौण नाम लोकसार बताया गया है। प्रसंगवश नियुक्तिकार ने अनेक दृष्टियों से लोक में सारभूत वस्तुओं का वर्णन किया है। प्रश्नोत्तर के माध्यम से नियुक्तिकार कहते हैं कि सम्पूर्ण लोक का सार धर्म, धर्म का सार ज्ञान, ज्ञान का सार संयम तथा संयम का सार निर्वाण है।
छठे धुत अध्ययन की नियुक्ति में द्रव्यधुत और भावधुत का वर्णन है। सातवें महापरिज्ञा अध्ययन की नियुक्ति में अध्ययनों की विषय-वस्तु के साथ महा और परिण्णा शब्द के निक्षेपों का उल्लेख है। आठवें विमोक्ष अध्ययन की नियुक्ति में निक्षेप के माध्यम से विमोक्ष का प्रतिपादन है। नियुक्तिकार ने भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण और प्रायोपगमन को भाव-विमोक्ष के अंतर्गत माना है। प्रायोपगमन मरण के अंतर्गत आर्य वज्र, आर्य समुद्र तथा व्याघातिम मरण के अंतर्गत आचार्य तोसलि का उदाहरण दिया है। नियुक्तिकार ने बारह वर्ष की संलेखना का सुंदर कम वर्णित किया है, जो साधना की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
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