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________________ ४१ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण ६. धुत- निस्संगता का अवबोध । ७. महापरिज्ञा–मोह से उद्भूत परीषह और उपसर्गों को सहने की विधि । ८. विमोक्ष—निर्याण अर्थात् अंतक्रिया की आराधना। ९. उपधानश्रुत—आठ अध्ययनों में प्रतिपादित अर्थों का महावीर द्वारा अनुपालन । समवायांग एवं नंदी के अनुसार इस ग्रंथ में श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए ज्ञानादि पांच आचार, भिक्षाविधि, विनय, विनय का फल, ग्रहण-आसेवन रूप शिक्षा, भाषा-विवेक, चरणव्रतादि, करा तथा संयम-यात्रा के निर्वाह हेतु आहार के विवेक का वर्णन है। इन सब बातों का नंदी सूत्रकार ने पांच आचार में समावेश कर दिया है। आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरतिप्रकरण में प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया १. षड्जीवनिकाय की यतना। १४. वस्त्र की एषणा-पद्धति। २. लौकिक संतान का गौरव-त्याग। १५. पात्र की एषणा-पद्धति । ३. शीत-उष्ण आदि परीषहों पर विजय । १६. अवग्रह-शुद्धि। ४. दृढ़ श्रद्धा। १७. स्थान-शुद्धि। ५. संसार से उदवेग। १८. निषद्या-शुद्धि। ६. कर्मो को क्षीण करने का उपाय। १९. व्युत्सर्ग-शुद्धि। ७. वैयावृत्त्य का उद्योग। २०. शब्दासक्ति-परित्याग। ८. तप का अनुष्ठान। २१. रूपासक्ति-परित्याग। ९. स्त्रीसंग का त्याग। २२. परकिया-वर्जन। १०. विधि-पूर्वक भिक्षा का ग्रहण। २३. अन्योन्यक्रिया-वर्जन। ११. स्त्री, पशु, क्लीब आदि से रहित शय्या। २४. पंच महाव्रतों में दृढ़ता। १२. गति-शुद्धि। २५. सर्वसंगों से विमुक्तता। १३. भाषा-शुद्धि। आचारांग में केवल आचार का ही वर्णन नहीं, अपितु अध्यात्म प्रधान दर्शन का विशद विवेचन हुआ है। सूत्रकृतांग की भांति इसमें तर्क की प्रधानता नहीं अपितु आत्मानुभूति के स्वर अधिक हैं। आचारांग नियुक्ति आचारांगनियुक्ति की रचना का क्रम चौथा है लेकिन विषय-निरूपण की दृष्टि से इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। उत्तराध्ययननियुक्ति में निक्षेपों के वर्णन में प्राय: एकरूपता है, इससे पाठक को कोई नया ज्ञान प्राप्त नहीं होता लेकिन आचारांगनियुक्ति इसकी अपवाद है। इसमें चरण, दिशा, ब्रह्म, गुण, मूल, कर्म, सम्यक् आदि शब्दों की निक्षेपपरक व्याख्या में अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का प्रतिपादन हुआ प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा की नियुक्ति में शस्त्र और परिज्ञा का विवेचन नि:शस्त्रीकरण की १. समप्र. ८९, नंदी ८१। Jain Education International २. प्रशमरतिप्रकरण ११४-१७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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