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निर्मुक्तिपंचक
१११. जीव निम्न कारणों से अष्काय का उपभोग करते हैं—स्नान करने, पीने, धोने, भोजन बनाने, सिंचन करने, यानपात्र तथा नौका में गमन - आगमन करने आदि-आदि में । ११२. इन्हीं कारणों से प्राणी अप्कायिक जीवों की हिंसा करते हैं। वे अपने सुख के लिए दूसरे जीवों के दुःखों की उदीरणा करते हैं, दुःख उत्पन्न करते हैं।
१३. उत्सेचनकूप आदि से पानी निकालना, पानी को (सघन और चिकने वस्त्र से ) छानना, वस्त्र, उपकरण, मात्र मंडक आदि धोना – ये सारे सामान्य रूप से बादर अष्काय के शस्त्र हैं ।
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११४. अष्काय विषयक शस्त्र तीन प्रकार के हैं
१. स्वकायशस्त्र नदी का पानी तालाब के पानी के लिए शस्त्र है।
२. परकाय शस्त्र - मृतिका क्षार आदि ।
३. उभयशस्त्र — उदकमिश्रित मिट्टी उदक के लिए शस्त्र है ।
भावशस्त्र है - असंयम |
११५. अप्काय के शेष द्वार पृथ्वी की भांति ही जानने चाहिए। इस प्रकार अप्काय विषयक यह निर्मुक्ति प्रतिपादित है।
११६. जितने द्वार पृथ्वीकायिक के लिए कहे गए हैं, उतने ही द्वार तेजस्कायिक जीवों के लिए हैं । भेद केवल पांच विषयों में है— विधान, परिमाण, उपभोग, शस्त्र तथा लक्षण ।
११७,११८. तेजस्काय के जीव दो प्रकार के हैं— सूक्ष्म और बादर सूक्ष्म सारे लोक में तथा बादर लोक के एक भाग में व्याप्त हैं । बादर तेजस्काय के पांच प्रकार हैं - अंगार, अग्नि, अचि, ज्वाला तथा मुर्मुर ।
११९. जैसे रात्रि में खद्योत ज्योति बिखेरता है, वह उसके शरीर का परिणाम शक्ति विशेष है। इसी प्रकार अंगारे में भी प्रकाश आदि की जो शक्ति है, वह तेजस्कायिक जीव से आविर्भूत है । जैसे ज्वरित व्यक्ति की उष्मा सजीव शरीर में ही होती है, वैसे ही अग्निकायिक जीवों में प्रकाश या उष्मा उनके शरीर की शक्ति विशेष है।
१२०. बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक जीव (क्षेत्र) पत्योपम के जितने परिमाण वाले हैं। तेजस्कायिक जीवों के शेष तीन प्रकार लोकाकाश प्रदेश राशि परिमाण जितने होते हैं । १२१. मनुष्यों के लिए बादर तेजस्काय के उपभोग गुण ये हैं जलाने के लिए, तपाने के लिए, प्रकाश करने के लिए, भोजन आदि पकाने के लिए तथा स्वेदन आदि के लिए । १२२. इन कारणों से मनुष्य तेजस्काय के जीवों की हिंसा करते हैं । वे अपने सुख के लिए दूसरे जीवों के दुःखों की उदीरणा करते हैं, दुःख उत्पन्न करते हैं ।
१२३. पृथ्वी, पानी, आई वनस्पति तथा त्रस प्राणी- ये सामान्यतः बादर तेजस्काय के
शस्त्र हैं ।
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असंख्येय भाग मात्र प्रदेशराशि पृथक-पृथक रूप से असंख्येव
१२४. इनके शस्त्र तीन प्रकार के हैं— कुछ स्वकाय शस्त्र, कुछ परकाय शस्त्र तथा कुछ उभय शस्त्र । ये सारे द्रव्य-शस्त्र हैं । भावशस्त्र है - असंयम ।
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