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________________ आचारांग निर्यक्ति २३७ ३२४. २९३. धीरे-धीरे सम्पूर्ण आहार के त्याग का ३२०. शय्या, ईर्या, अवग्रह, पिंड, भाषा और पात्र निर्देश । के निक्षेप का निर्देश। २९४. देश विमोक्ष का स्वरूप । ३२१. शय्या के निक्षेप तथा संयती के योग्य शय्या नौवां अध्ययन : उपधानश्रुत के विषय में जिज्ञासा। ३२२,३२३. द्रव्य शय्या के भेद तथा वल्गूमती का २९५. तीर्थंकरों द्वारा अपने तीर्थ में उपधानश्रुत उदाहरण । अध्ययन में तपस्या का उपदेश ।। भावशय्या के भेद । अन्य तीर्थंकरों का निरुपसर्ग तथा महावीर । ३२५. बचन-विशोधि के कारणों के कथन की का सोपसर्ग/कष्टबहल तपःकर्म का निर्देश । प्रतिज्ञा । २९७. तीर्थकरों का तप में उद्यम । ३२६,३२७ शय्यैषणा अध्ययन के उद्देशकों की विषय २९८. दुःखबहुल मानव जीवन में तप का महत्त्व । वस्तु का निर्देश। २९९. उपधान श्रुत के उद्देशकों की विषय-वस्तु ३२८. ईर्या शब्द के छह प्रकार से निक्षेप । का कथन । ३२९. द्रव्य ईर्या के भेद । ३००. उपधान तथा श्रुत शब्द के निक्षेप । ३३०. भाव ईर्या के भेद। ३०१. द्रव्य उपधान तथा भाव उपधान का स्वरूप।। ३३१.३३२. ईया की शुद्धि के प्रकार । ३०२. भाव उपधान के विषय में मलिन वस्त्र की ३३३-३५. ईयषणा अध्ययन के उद्देशकों की विषय वस्तु उपमा । का निर्देश। ३०३. ओधुणण शब्द के एकार्थक । भाषा शब्द के निक्षेप तथा दशकालिक की ३०४. महावीर के पथ पर चलने से सिद्धि-प्राप्ति वाक्य-शुद्धि नियुक्ति की भांति इसकी का निर्देश । नियुक्ति करने का निर्देश। द्वितीय श्रतस्कंध : आचारचूला ३३७. भाषाजात अध्ययन के उद्देशकों की विषय वस्तु का वर्णन । ३०५,३०६. द्रव्य और भाव अग्र का स्वरूप । ३३८. वस्त्रषणा अध्ययन के उद्देशकों की विषय३०७. आचाराग्र/आचारचूला के निर्दृहण का वस्तु का निर्देश तथा पात्र के निक्षेप। उद्देश्य । ३३९-४२. अवग्रह शब्द के निधोप तथा अवग्रह के भेद३०८,३०९. आचारचुला के उद्देशकों की विषय वस्तु का प्रभेद । कथन । ३१०,३११. अध्ययनों के निर्यहण-स्थल का निर्देश । दूसरी चूला : सप्तसप्तिका ३१२-१४. एकविध संयम का विस्तार कैसे ? ३४३. द्वितीय चला के अध्ययनों की विषय वस्तु । ३१५. महाव्रत पांच ही क्यों ? ३४४. उच्चार और प्रस्रवण शब्द का निरुक्त । महाव्रतों की सुरक्षा के लिए पांच-पांच ३४५. मुनि को अहिंसा की दृष्टि से उच्चारभावनाओं का निर्देश । प्रस्रवण विधि में अप्रमत्त रहने का निर्देश । ३१७. पंच चूलिकाओं का नामोल्लेख । ३४६. द्रव्यशब्द और भावशब्द का स्वरूप । पहली चूला : पिण्डषणा ३४७. पर और अन्य श-द के निक्षेप । ३४८. यतमान और निष्प्रतिकर्म का पर से संबंध । ३१८. पिंडषणा नियुक्ति की भांति शय्या, वस्त्र, पात्र आदि की नियुक्ति का कथन । तीसरी चला : भावना दशवकालिक के वाक्य-शुद्धि अध्ययन की ३४९. द्रव्य भावना का स्वरूप तथा भाव भावना भांति भाषा-विवेक का कथन । के भेद। ३१९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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