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________________ २३४ नियुक्तिपंचक ८४. ~ ८६. - ~ ७०. द्रव्यपृथ्वी और भावपृथ्वी का स्वरूप । १०४. यथार्थ-बोध द्वारा पृथ्वीकाय की हिंसा से ७१. पृथ्वीकाय के भेद। विरति । ७२. बादरपृथ्वी के श्लक्ष्ण और खर आदि दो १०५. अणगार की विशेषताएं । भेद । अपकाय के द्वार। ७३-७६. खर पृथ्वी के छत्तीस भेदों का नामोल्लेख । १०७. अप्काय जीवों के भेद । ७७,७८. वर्ण, गंध आदि के द्वारा पथ्वीकाय के १०८. बादर अपकाय के पांच भेद । अनेक भेद । अपकाय जीवों का परिमाण । सूक्ष्म और बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्त और ११०. हाथी की उपमा द्वारा अपकाय में जीवत्वअपर्याप्त भेद । सिद्धि । ८०,८१. वक्ष और औषधि आदि के उदाहरण से अपकाय के उपभोग के प्रकार । पृथ्वीकाय के नानात्व का निरूपण । ११२. उपभोग के कारणों से अपकाय की हिंसा। ८२. पृथ्वीकाय जीवों की सूक्ष्मता का निरूपण । ११३. अप्काय जीवों के शस्त्र । सूक्ष्म पृथ्वीकाय के अस्तित्व को जिन-आज्ञा ११४. द्रव्यशस्त्र और भावशस्त्र । से स्वीकृत करने का उल्लेख । ११५. पृथ्वीकाय की भांति अन्य द्वारों के विवेचन का कथन । पृथ्वीकाय के लक्षण । तैजसकाय के द्वारों का निर्देश । ८५. पृथ्वीकाय में जीवत्व-सिद्धि का उदाहरण । ११७. तंजसकाय जीवों के भेद । पृथ्वीकाय जीवों का परिमाण। ११८. बादर तैजसकाय के पांच भेद । ८७,८८. उदाहरण द्वारा परिमाण का निर्देश । उपमा द्वारा तैजसकाय में जीवत्व-सिद्धि । ८९,९०. क्षेत्र और काल की दृष्टि से पृथ्वीकाय का १२०. तैजसकाय जीवों का परिमाण । परिमाण। १२१. तैजसकाय जीवों के उपभोग के प्रकार । ९१. पृथ्वीकाय का अवगाहन । १२२. उक्त उपभोग के कारणों से तैजसकाय की ९२,९३. पृथ्वीकाय का उपभोग कितने प्रकार से ? हिंसा । उपर्युक्त उपभोग के कारणों से पृथ्वीकाय की १२३,१२४. तैजसकाय जीवों के शस्त्र । हिंसा का निर्देश । पृथ्वीकाय की भांति अन्य द्वारों के कथन पृथ्वीकाय के शस्त्र । का निर्देश। स्वकायशस्त्र, परकायशस्त्र और भावशस्त्र १२६. पृथ्वीकाय की भांति वनस्पतिकाय के द्वारों का निरूपण। के कथन का निर्देश । ९७,९८. उदाहरण द्वारा पृथ्वीकाय की वेदना का १२७-३०. वनस्पतिकाय के भेद-प्रभेद । निरूपण। १३१-३३. प्रत्येक वनस्पति का दृष्टांत द्वारा लक्षण कथन । पथ्वीकाय का वध करने वाला अणगार १३४. प्रत्येक वनस्पति जीवों का परिमाण । नहीं। १३५. आज्ञा द्वारा इन जीवों के अस्तित्व की १००. हिंसा करने वाले अणगार के दोष । स्वीकृति । १०१. कृत, कारित, अनुमोदन द्वारा पृथ्वीकाय का १३६-४०. साधारण वनस्पति के लक्षण । वध । १४१. अनन्तकाय जीवों के भेद । . १०२,१०३. पृथ्वीकाय के वध से तन्निश्रित अनेक जीवों १४२. प्रत्येक वनस्पति की सूक्ष्मता का निर्देश । की हिंसा। १४३. निगोद के जीवों की सूक्ष्मता का निर्देश । १२५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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