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________________ ३४ नियुक्तिपंचक एक काल में न होकर विभिन्न समयों में हुआ अत: यह संकलन सूत्र है, एक कर्तृक नहीं। इसके कुछ अंश बाद में स्थविरों द्वारा जोड़े गए हैं। इसका प्रबल प्रमाण है केशिगौतमीय अध्ययन । दूसरी बात सम्यक्त्व-पराक्रम अध्ययन में जो प्रश्नोत्तर हैं, वे अंगसूत्रों की प्रश्नोत्तर शैली से बिल्कुल भिन्न हैं। जाले शान्टियर का अभिमत है कि यह प्रारम्भ में मूल रूप से बौद्ध ग्रंथ धम्मपद और सुत्तनिपात के समान था। संभवत: इसमें सैद्धान्तिक विषयों का प्रतिपादन करने वाले अध्ययन नहीं थे। केवल संन्यासी जीवन की आचार-शैली और धार्मिक कथाएं ही संकलित थीं। कालान्तर में इसका स्वतंत्र महत्त्व स्थापित करने हेतु यह अनुभव किया गया कि इसमें धार्मिक, सैद्धान्तिक, दार्शनिक विषयों का समावेश किया जाए अत: परवर्तीकाल में इसमें सैद्धान्तिक, दार्शनिक आदि विषय जोड़ दिए गए। निष्कर्ष की भाषा में यह कहा जा सकता है कि उत्तराध्ययन में परिवर्तन एवं परिवर्धन का क्रम महावीर-निर्वाण से प्रारम्भ होकर वल्लभी-वाचना के समय तक चलता रहा। रचनाकाल उत्तराध्ययन का उल्लेख दिगम्बर ग्रंथों में आदर के साथ उल्लिखित है। इससे स्पष्ट है कि संघभेद होने से पूर्व ही यह एक ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। अन्यथा दिगम्बर-परम्परा में इसका उल्लेख नहीं मिलता। दशवैकालिक की रचना के बाद यह दशवैकालिक के बाद पढ़ा जाने लगा,इस बात से स्पष्ट है कि उत्तराध्ययन की रचना दशवैकालिक से पूर्व हो चुकी थी। दशवकालिक के कर्ता शय्यंभवसूरि हैं, जिनका समय वीर-निर्वाण के ७५ वर्ष बाद माना जाता है। इस प्रकार उत्तराध्ययन की प्राचीनता एक ओर महावीर-निर्वाण तक जा पहुंचती है तो दूसरी ओर ऐसे भी उल्लेख हैं, जिससे उत्तराध्ययन के अध्ययनों की परवर्तिता सिद्ध होती है। इस सूत्र में वर्णित जातिवाद, दासप्रथा, यज्ञ एवं तीर्थस्थान आदि के वर्णन प्राचीनता के द्योतक हैं। अध्ययन एवं विषयवस्तु उत्तराध्ययन में ३६ अध्ययन तथा १६३८ श्लोक हैं। इसके प्रत्येक अध्ययन अपने आप में परिपूर्ण हैं। इनमें आपस में भी कोई संबंध परिलक्षित नहीं होता। समवायांग में उत्तराध्ययन के जिन ३६ अध्ययनों का नामोल्लेख मिलता है, वे नियुक्ति में उपलब्ध अध्ययनों के नामों से कुछ भिन्न हैं। यहां उत्तराध्ययन, उसकी नियुक्ति तथा समवाओ में आए अध्ययनों के नामों का चार्ट प्रस्तुत किया जा रहा है। साथ ही किस अध्ययन पर कितनी नियुक्ति-गाथाएं लिखी गयी इसका भी संकेत दिया जा रहा है-- - उत्तराध्ययन नियुक्तिकार समवाओ नियुक्तिगाथाएं १. विनयश्रुत विनयश्रुत विनयश्रुत १-६५ २. परीषहप्रविभक्ति परीषह परीषह ६६-१४१ ३. चतुरंगीय चतुरंगीय चातुरंगीय १४२-१७२/१५ ४. असंस्कृत असंस्कृत असंस्कृत १७३-९९ १. दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, भूमिका पृ. २४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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