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________________ उत्तराध्ययन नियुक्ति १४५. द्रव्यांग के छह प्रकार हैं-गंधांग, औषधांग, मद्यांग, आतोद्यांग, शरीरांग और युद्धांग । प्रत्येक के अनेक प्रकार ज्ञातव्य हैं।। १४६-४८. गंधांग के ये प्रकार हैं-जमदग्निजटा, हरेणुका-प्रियंगु, शबरनिवसनकतमालपत्र, सपिन्निक-ध्यामक गंधद्रव्य युक्त, वृक्ष की बाह्य त्वा-चातुर्जात-ये गंधद्रव्य मल्लिका से वासित होकर अर्थात् चूर्ण बनकर कोटि मूल्य के हो जाते हैं, बहुमूल्य वाले हो जाते हैं। ओसीर और ह्रीबेर (सुगंधित द्रव्यविशेष) का एक पल तथा देवदारु का एक कर्ष, शतपुष्पा तथा तमाल-पत्र-दोनों का एक-एक पलिका मात्र-इन गन्ध द्रव्यों को पीस कर एक चूर्ण बनाया जाता था। इसी चूर्ण से स्नान, विलेपन और पटबास किया जाता था। चंडप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता ने इनका प्रयोग कर उदयन को मोहित किया था। १४९,१५०. औषधांग-दो रजनी-पिंडदारु और हल्दी, माहेन्द्रफल-कुटज के बीज, समूषण-त्रिकटक के तीन अंग-सुंठ, पीपल, काली मिरच, सरस-आर्द्रक, कनकमूल-बिल्वमूल इनके साथ आठवां उदक-इससे जो गोली बनती है, वह खाज, तिमिर-तिरमिरा (आंख का रोग), आधा सीसी (अर्ध शिरोरोग), तार्तीयीक (तीन दिनों से आने वाला ज्वर), चातुर्थिक (चार दिनों से आने वाला ज्वर)-इन सभी रोगों को शांत करती है तथा चूहे, सर्प आदि के काटने पर काम आती है। १५१. मद्यांग-सोलह भाग द्राक्षा, चार भाग धातकी पुष्प (धव के फूल) और एक आढक (मागध के मान से) इक्षुरस-ये मद्यांग हैं। १५२. आतोद्यांग-एकमुकुंदा-वादित्र विशेष का आतोद्यांग है तूर्य । एक अभिमारक नामक वृक्षविशेष का काठ अग्नि का अंग है । वह अग्नि का उत्पादक है। शाल्मली पुष्पों का बद्ध गुच्छा आमोडक होता है। वह गुच्छा आमोडकांग है । १५३,१५४. शरीरांग-शिर, छाती, उदर, पीठ, दोनों भुजाएं तथा दो उरू-ये शरीर के आठ अंग हैं । शेष अर्थात् कान, नाक, आंख, हाथ, पैर, जंघा, नख, केश, दाढी, मूंछ, अंगुली, होठये अंगोपांग हैं। १५५. युद्धांग-यान, आवरण-कवच आदि, प्रहरण-तलवार आदि, युद्ध-कौशल, नीति, दक्षता, व्यवसाय प्रवृत्ति, शरीर, आयोग्य-ये सारे मिलकर युद्धांग होते हैं । १५६. भावांग-भावांग के दो प्रकार हैं- श्रुतांग और नोश्रुतांग । श्रुतांग के आचारांग आदि बारह भेद हैं तथा नोश्रुतांग अर्थात् अश्रुतांग के चार भेद हैं । १५७. मनुजत्व, धर्मश्रुति, श्रद्धा और तप-संयम में पराक्रम-ये भावांग संसार में दुर्लभ हैं। १५८. अंग, दशभाग, भेद, अवयव, असकल, चूर्ण, खंड, देश, प्रदेश, पर्व, शाखा, पटल तथा पर्यवखिल-ये सब अंग के पर्यायवाची शब्द हैं। १५९. दया, संयम, लज्जा, जुगुप्सा, अछलना, तितिक्षा, अहिंसा और ह्री-ये सारे भावांग अर्थात संयम के पर्यायवाची शब्द हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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