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नियुक्तिपंचक १०७. कोल्लकेर नगर में स्थविर आचार्य का स्थायी निवास था। दत्त उनका शिष्य था। वह घुमक्कड़ था। आचार्य ने उसे धातृपिण्ड दिलाया । आचार्य की अंगुली का देवयोग से प्रज्वलन । गुरु ने चर्या-परीषह सहन किया।
१०८. कुरुदत्त का पुत्र प्रवजित हुआ। वह गजपुर से साकेत गया। चोर-गवेषक ने उसको चोर समझकर शिर पर अग्नि जलाई। मुनि ने समतापूर्वक नषेधिकी परीषह सहन किया।'
१०९,११०. कौशाम्बी नगरी में यज्ञदत्त ब्राह्मण के दो पुत्र थे-सोमदत्त और सोमदेव । दोनों आचार्य सोमभूति के पास दीक्षित हो गए। वे स्वज्ञाति (संज्ञात) पल्ली में आए। विकट (मद्य) के कारण उनको वैराग्य हो गया। दोनों ने नदी के तीर पर जाकर प्रायोपगमन संथारा कर लिया। नदी के प्रवाह ने उन्हें समुद्र में ला ढकेला । उन्होंने समता से शय्या-परीषह को सहन किया।'
१११. राजगृह में अर्जुन मालाकार । उसकी पत्नी थी स्कन्दश्री। मुद्गरपाणि यक्ष का मंदिर । गोष्ठी के सदस्यों द्वारा स्कन्दश्री पर बलात्कार । भगवान का आगमन । सदर्शन का भगवद वंदना के लिए जाना। दीक्षित होकर उसने समभाव से आक्रोश-परीषह को सहन किया।
११२-१४. श्रावस्ती नगरी। जितशत्रु राजा। धारिणी देवी। स्कन्दक पुत्र । पुरन्दरयशा पुत्री । उसका विवाह दंडकी नामक राजा के साथ हुआ। कुंभकारकटक नगर में तीर्थंकर मुनिसुव्रत के शिष्य स्कन्दक पांच सौ मुनियों के साथ वहां आए। देवी पदरयशा वहीं थी। महाराज दंडकी का पुरोहित पालक था। उसने रुष्ट होकर पांच सौ मुनियों को कोल्ह में पिलबा दिया। उन्होंने माध्यस्थभाव के चिन्तन से राग-द्वेष के तुलान को सम कर वध परीषह सहते हुए अपना कार्य सिद्ध कर लिया।
११५. याचना परीषह में बलदेव' का उदाहरण तथा अलाभ परीषह में कृषिपारासर अर्थात ढंढणकुमार' का उदाहरण ज्ञातव्य है।
११६. मथुरा में कालवेशिक पुत्र प्रवजित होकर मुद्गलपुर में एकलविहारप्रतिमा में स्थित हुआ। सियाल द्वारा भक्षण । राजा द्वारा सियालों को भगाना पर सियालों का उपसर्ग । मुनि ने ममभावपूर्वक रोग परीषह को सहन किया।
११. श्रावस्ती के भद्र नामक राजकुमार को राज्य में गुप्तचर समझकर शरीर को क्षतविक्षत कर नमक छिड़का और दर्भ से वेष्टित किया। उसने समतापूर्वक तृणस्पर्श परीषह को सहन किया।
११८. चंपा नगरी में सुनन्द श्रावक । वह जल्ल-धारण में जुगुप्सी था। वह मरकर कौशाम्बी नगरी में धनी के घर पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। कालान्तर में वह प्रवृजित हुआ। उसके शरीर में दुर्गध लेकिन देवयोग से फिर मूल रूप में आ गया।
१. देखें-परि० ६, कथा सं० ११ २. वही, कथा सं० १२ ३. वही, कथा सं० १३ ४. वही, कथा सं० १४ ५. वही, कथा सं० १५
६. वही, कथा सं० १६ ७. वही, कथा सं० १७ ८. वही, कथा सं० १८ ९. वही, कथा सं० १९ १०. वही, कथा सं० २०
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