SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण २९ प्रथम अध्ययन की नियुक्ति में नियुक्तिकार ने अनेक जिज्ञासाओं को उपस्थित करके साधु की भिक्षाचर्या को समाहित किया है। अंत में न्याय के दस अवयवों का नामोल्लेख एवं उनकी व्याख्या प्रस्तुत की है। दूसरे अध्ययन की नियुक्ति में श्रमण का स्वरूप, पूर्व के १३ निक्षेप तथा काम के भेद-प्रभेदों का वर्णन है। पद के भेद - प्रभेदों का वर्णन काव्य एवं साहित्य की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । तीसरे अध्ययन की नियुक्ति में मूलपाठ में आए किसी भी शब्द की व्याख्या न करके अध्ययन के नाम में आए क्षुल्लक, आचार एवं कथा — इन तीन शब्दों के निक्षेप एवं व्याख्या प्रस्तुत है । कथा के भेद-प्रभेदों का नियुक्तिकार ने सर्वांगीण निरूपण किया है। 1 चौथे अध्ययन की नियुक्ति में षटुकाय का वर्णन करके नियुक्तिकार ने जीव के अस्तित्व एवं पुनर्जन्म को सिद्ध करने में अनेक हेतु प्रस्तुत किए हैं। यह सारा वर्णन दर्शन के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। आत्मा के संबंध में इतना तर्कसंगत और यौक्तिक वर्णन नियुक्तिकार से पूर्व नहीं मिलता। दशवैकालिक का पांचवां अध्ययन बहुत बड़ा है लेकिन इसकी नियुक्ति बहुत छोटी नियुक्तिकार ने पिंड एवं एषणा इन दो शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत की है। छठे अध्ययन का एक नाम धर्मार्थकाम भी है अत: नियुक्तिकार ने धर्म, अर्थ और काम का विस्तृत वर्णन किया है। सातवें वाक्यशुद्धि अध्ययन में भाषा के भेद - प्रभेदों एवं शुद्धि का वर्णन किया गया है। अंत में भाषा - विवेक पर मार्मिक सूक्तियां भी मिलती हैं । आठवें अध्ययन में प्रणिधि के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है । नवें अध्ययन में विनय के भेद-प्रभेदों एवं समाधि का विवेचन है । दसवें सभिक्खु अध्ययन में भिक्षु के स्वरूप, लक्षण, उसके एकार्थक एवं भिक्षु की कसौटियों का वर्णन है । नियुक्तिकार ने भिक्षु को स्वर्ण की उपमा दी है । इसमें स्वर्ण के आठ गुण एवं चार कसौटियों का उल्लेख है । प्रथम चूलिका की नियुक्ति में चूड़ा के निक्षेप एवं प्रथम चूड़ा का नाम रतिवाक्या की सार्थकता पर विचार किया गया है। द्वितीय चूलिका की निर्युक्ति में साधु की प्रशस्त चर्या पर विचार हुआ है । अंत में मुनि मनक के समाधिमरण और उसके स्वर्गस्थ होने पर आचार्य शय्यंभव द्वारा इसके निर्यूहण का उद्देश्य स्पष्ट किया गया है। दार्शनिक दृष्टि से इस नियुक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है । दशवैकालिक की एक नयी नियुक्ति आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित निर्युक्ति के अतिरिक्त एक अन्य नियुक्ति की प्रति लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर के ग्रंथ-भंडार में मिली। इसमें दशवैकालिक की अति संक्षिप्त निर्युक्ति है । हस्तप्रति के आधार पर लेखक के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती लेकिन पंडित दलसुखभाई मालवणिया के अनुसार यह नियुक्ति किसी अन्य आचार्य द्वारा रचित होनी चाहिए । इस नियुक्ति में कुल ९ गाथाएं हैं, जिनमें चार गाथाएं मूल दशवैकालिकनियुक्ति की हैं तथा छह गाथाएं स्वतंत्र हैं । प्रारम्भिक चार गाथाओं में कर्त्ता, रचना का उद्देश्य तथा रचनाकाल का उल्लेख है । अंतिम छह गाथाओं में चूलिका की रचना के पीछे क्या इतिहास रहा, इसका उल्लेख मिलता 1 हारिभद्रीय टीका में बिना नामोल्लेख के यह घटना संक्षेप में निर्दिष्ट मात्र है । प्रस्तुत नियुक्ति के अंत १. दशहाटी पृ. २७८, २७९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy