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नियुक्ति चक ____ गंगाए' दोकिरिया, छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती।
थेरा य गोट्ठमाहिल, पुट्ठमबद्धं परूति' ।। १७०. सावत्थी उसभपुरं, सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं ।
पुरिमंतरंजि दसपुर, रहवीरपुरं च नगराइं ।। १७१. चोद्दस सोलस वासा, चोइसवीसुत्तरा य दोण्णि सया।
अट्ठावीसा य दुवे, पंचेव सया उ चोयाला ॥ १७२. पचसया चुलसीया, छच्चेव सया णवुत्तरा होति ।
णाणुत्पत्तीय दुवे, उप्पण्णा णिव्वुए सेसा ।। १७२।१. चोदसवासाइं तदा, जिणेण उप्पाडितस्स णाणस्स ।
तो बहुरयाण दिट्ठी, सावत्थीए समुप्पन्ना। १७२।२. जेट्ठा सुदंसण जमालिऽणोज्ज सावत्थि तिदुगुज्जाणे ।
पंचसया य सहस्सं, ढंकेण जमालि मोत्तूणं ।। १७२।३. रायगिहे गुणसिलए, वसु चउदसपुन्वि तीसगुत्ते य ।
आमलकप्पा नगरी, मित्तसिरी कूर पिउडाई ।। १७२।४. सेयवि पोलासाढे, जोगे तद्दिवस हिययसूले य ।
सोधम्म-नलिणिगुम्मे, रायगिहे मुरिय बलभद्दे ।। १. गंगातो (च), गंगातो (विभा २७८४)।
टीकाकार ने भी इन गाथाओं के बारे में २. आवनि ७८०, गाथा १६९ के बाद कहीं भी 'आह नियुक्तिकारः' या नियुक्तिकृद्
'सावत्थी उसभरं' आदि तीन गाथाओं ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया है तथा गाथाओं का संकेत चूणि में मिलता है। टीका की व्याख्या न करके मात्र सम्प्रदाय का में ये तीनों गाथाएं तथा १७२।१ गाथा विस्तृत विवेचन दिया है जो किसी प्राचीन उल्लिखित और व्याख्यात नहीं हैं। १६७ से ग्रंथ से उद्धृत है। १७२।१-१३ इन १३ १७२ तक की गाथाएं आवश्यकनियुक्ति की गाथाओं में १६८ एवं १६९ वीं गाथा की ही हैं। १७२।२-१३ की गाथाएं टीका में नियुक्ति व्याख्या है। गाथा के क्रम में व्याख्यात हैं किन्तु ये गाथाएं ३. निभा ५६२२, विभा २७८ । तथा १७२११ गाथा विशेषावश्यक भाष्य की ४. निभा ५६१८, विभा २७८: । हैं अत: इनको निगा के क्रम में नहीं जोड़ा
है। इन गाथाओं के बारे में चूर्णिकार ने ६. टीका में निह्नववाद के चाल क्रम में यह _ 'चोद्दस वासा तइया' 'जेट्ठा सुदंसण' गा. गाथा नहीं मिलती है किन्तु चूणि में इसका
१७२११,२ इन दो गाथाओं का संकेत देकर संकेत मिलता है। देखें विभा २७८८, निभा 'एवं सत्तण्ह वि निण्हयाण वत्तव्बया भाणियव्वा ५६११ । जहा सामाइयनिज्जुतीए केइ पुण निण्हए एत्थ ७. निभा ५५९७, विभा २७८९। आलावगे पडिकहंति' का उल्लेख किया है। ८. निभा ५५९८, विभा २८१६ । ये गाथाएं विभा से यहां उधत की हैं क्योंकि ९. निभा ५५९९, विभा २८३९।
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