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________________ नियुक्तिपंचक १९६. संते आउयकम्मे, धरती तस्सेव जोवती उदए । ___ तस्सेव निज्जराए, मओ त्ति सिद्धो' नयमएणं ।। १९७. जेण य धरति भगवतो, जीवो जेण उ भवाउ संकमई। जाणाहि तं भवाउ, चउब्विहं तब्भवे दुविहं ।। १९८. दुविधा य होंति जीवा, सुहुमा तह बायरा य लोगम्मि। सुहुमा य सव्वलोए, दो चेव य बायरविहाणे ।। १९९. आदाणे परिभोगे, जोगुवओगे कसाय-लेसा य । आणापाण इंदिय, बंधोदय निज्जरा चेव ।।दारं।। २००. चित्तं चेयण सण्णा, विण्णाणं धारणा य बुद्धी य । ईहा मती वितक्का, जीवस्स उ लक्खणा एए ।।दार।। १. सिद्धा (अ)। २. १९६,१९७ इन दो गाथाओं के आगे टीका में 'भाष्यम्' (हाटी भागा ७,८) लिखा हुआ है। यद्यपि टीकाकार हरिभद्र ने अपनी व्याख्या में इन गाथाओं के भाष्य होने का कोई उल्लेख नहीं किया है किन्तु मुद्रित प्रति में इनको नियुक्तिगाथा के क्रम में नहीं जोड़ा गया है। आदर्शों में नियुक्ति और भाष्य की गाथा साथ में ही लिखी गयी है अत: उनके आधार पर निर्णय नहीं किया जा सकता। दोनों चूणियों में ये गाथाएं नियुक्तिगाथा के रूप में व्याख्यात हैं। विषयवस्तु और क्रमबद्धता की दृष्टि से भी ये नियुक्तिगाथा प्रतीत होती हैं। ३. ० मइ (अ)। ४. दुविहा (हा, अचू)। ५. प्रस्तुत गाथा के आगे टीका की मुद्रित प्रति में 'भाष्यम्' (हाटी भागा ९) लिखा है लेकिन यह गाथा नियुक्ति की है, उसके कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं (१) दोनों चूणियों में यह नियुक्ति गाथा के रूप में व्याख्यात है। (२) इससे अगली गाथा भाष्य की है, जिसको पढ़ने मात्र से स्पष्ट हो जाता है कि १९८ की गाथा भाष्य की न होकर नियुक्ति गाथा हैसुहुमा य सव्वलोए, परियावन्ना भवंति नायव्वा । दो चेव बायराणं, पज्जत्तियरे य नायव्वा ।। (हाटी प १२२) भाष्यकार प्रायः नियुक्ति की व्याख्या करते हैं। कहीं-कहीं पूरा चरण अपनी व्याख्या में ले लेते हैं, इसमें भी ऐसा ही है । (३) गा. १९३ और १९४ में जीव से संबं धित निक्षेप आदि १३ द्वारों का उल्लेख है। आगे सभी द्वारों की नियुक्तिकार ने संक्षिप्त व्याख्या की है, फिर इस प्ररूपणा द्वार की व्याख्या भी नियुक्तिकार की ही होनी चाहिए। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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