SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ ५२. नियुक्तिपंचक ४७।१. तत्थाहरणं दुविहं, चउन्विहं होइ एक्कमेक्कं तु । हेऊ चउव्विहो खलु, तेण उ साहिज्जए अत्थो' ॥ ४८. 'णातं आहरणं' ति य, दिळंतोवम्म निदरिसणं तह य । एगटुं तं दुविहं, चउव्विहं चेव नायव्वं ।। चरितं च कप्पितं या', दुविहं तत्तो चउविहेक्केक्कं । आहरणे तसे, तद्दोसे चेवुवन्नासे ।।दारं।। ५०. चउधा खलु आहरणं, होति अवाओ उवाय ठवणा य । तह य पडुप्पन्नविणासमेव पढमं चउविगप्पं ।। ५१. दवावाए दोन्नि उ, वाणियगा भायरो धणनिमित्तं । वहपरिणएक्कमेक्कं, दहम्मि मच्छेण निव्वेओ ।। ___ खेत्तम्मि अवक्कमणं, दसारवग्गस्स होइ अवरेणं । दीवायणो' य काले, भावे मंडुक्कियाखवओ ।। सिक्खगअसिक्खगाणं, संवेगथिरट्ठयाइ दोण्हं पि । दव्वाइयाइ एवं, दंसिज्जते 'अवाया उ' ।। ५४. दवियं कारणगहियं, विगिचियव्वमसिवाइ खेत्तं च । बारसहिं एस्सकालो, कोहाइविवेग भावम्मि ।। १. इस माथा का दोनों चणियों में कोई उल्लेख स्पष्ट लिखते हैं कि-'स्वरूपमेषां प्रपञ्चेन नहीं मिलता। यह गाथा प्रक्षिप्त प्रतीत होती भेदतो नियुक्तिकार एव वक्ष्यति' (हाटी प. है क्योंकि आगे की गाथा में पुनः इसी ३५) तथा गा. ५२ की व्याख्या में 'प्रकृतविषय की पुनरुक्ति हई है। यहां यह गाथा योजनां पुननियुक्तिकार एव करिष्यति, किमविषयवस्तु की दृष्टि से भी अप्रासंगिक लगती काण्डः एव नः प्रयासेन' (हाटी प. ३६)। इसके अतिरिक्त गा. ७९ की व्याख्या में भी २. नायमुदाहरणं (हा)। 'भावार्थस्तु प्रतिभेदं स्वयमेव वक्ष्यति नियुक्ति३. च (जिचू), वा (हा)। कारः' (हाटी प. ५५) कहा है। इन प्रमाणों ४. भवे चउहा (अ,ब), ५० से ८५ तक की से स्पष्ट है कि टीकाकार के सामने ये गाथाएं गाथाओं का दोनों चूर्णियों में कोई संकेत नहीं। निर्यक्तिगाथाओं के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी है किन्तु व्याख्या और कथानक मिलते हैं। थीं। अत: हमने इनको निर्यक्तिगाथा के क्रम मुनि पुण्यविजयजी ने ५६,७३ और ८२ इन में रखा है। तीन गाथाओं को उद्धृतगाथा के रूप में माना ५. देवा० (अ,ब)। है। ऐसा अधिक संभव लगता है कि चूणि ६. ० खमओ (ब)। की व्याख्या के अनुसार किसी अन्य आचार्य ७. अवायाओ (अ)। ने इन गाथाथों की रचना की हो किन्तु गाथा ८. एस० (अ)। ५०वीं की व्याख्या में टीकाकार हरिभद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy