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________________ दशवकालिक नियुक्ति ४०. दुविहो लोगुत्तरिओ, सुयधम्मो खलु चरित्तधम्मो य । सुयधम्मो सज्झाओ, चरित्तधम्मो समणधम्मो' ।। ४१. दव्वे भावे वि' य मंगलाणि दवम्मि पुण्णकलसादो । धम्मो उ भावमंगलमत्तो 'सिद्धि त्ति' काऊणं ।। ४२. हिंसाए पडिवक्खो, होइ अहिंसा चउव्विहा 'सा उ'५ । दव्वे भावे य तहा, अहिंसऽजीवाइवाओ त्ति ।। ४३. पुढवि-दग-अगणि मारुय, वणसइ बि-ति-चउ-पणिदि अज्जीवे । पेहोपेह-पमज्जण, परिठवण मणो-वई काए ।। ४४. अणसणमूणोयरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया, य बज्झो तवो होइ ।। ४५. पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं उस्सग्गो वि य, अभितरओ तवो होइ° ।। ४६. जिणवयणं 'सिद्धं चेव'', भण्णए१२ कत्थई उदाहरणं । आसज्ज उ सोयार, हेऊ वि कहिंचि भण्णेज्जा ।। ४७. कत्थइ पंचावयवं, दसहा वा सव्वहा न पडिसिद्धं । न य पुण सव्वं भण्णति, हंदी सवियारमक्खातं ।। १. मुनिश्री पुण्यविजयजी ने अपने द्वारा संपादित गाथा का संकेत न होने पर भी इनकी विस्तृत अचू में प्रस्तुत गाथा को नियुक्तिगाथा के व्याख्या मिलती है। कुछेक विद्वानों के अनुसार रूप में स्वीकृत नहीं किया है। इसका भावार्थ ये गाथाएं बाद में प्रक्षिप्त हुई हैं किन्तु गद्य रूप में दोनों चूणियों में उपलब्ध है। अगस्त्यसिंह चूणि (प.११) की २०वीं गाथा टीका तथा आदर्शों में भी यह नियुक्तिगाथा की व्याख्या में कहा है कि संयम और तप के क्रम में है अत: इसे प्रक्षिप्त नहीं नियुक्ति विशेष से कहे जाएंगे, अत. यहां इनका माना जा सकता। विषय की क्रमबद्धता उल्लेख नहीं है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है की दृष्टि से भी यह गाथा यहां प्रासंगिक कि ये गाथाएं चूर्णिकार के सामने नियुक्तिलगती है। गाथा के रूप में थीं। २. ४ (जिच)। ८. वणस्सई (हा)। ३. ०लाई (हा)। ९. होही (हा), तु० उसू ३०।८ । ४. सिद्ध त्ति (ब)। १०. उसू ३०।३० । ५. हिंसा (अ, ब) । ११. सिद्धमेव (जिचू)। ६. ० अज्जीवा० (ब)। १२. भण्णती (अचू), भण्णइ (ब), भण्णई (अ)। ७.४२ से ४५ तक की गाथाएं टीका तथा सभी १३. कत्थ वि (जिच), कत्थति (अचु)। हस्तप्रतियों में उपलब्ध हैं। दोनों चणियों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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