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________________ १८ ९. नामं ठवणा दविए, खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो खलु निक्खेवो, दसगस्स उ छव्विहो होति ॥ ९।१. बाला 'मंदा किड्डा २, बला य पण्णा य हायणि पवंचा । पब्भार- मुम्मुही सायणी य, दसमी उ कालदसा' ।। देस-काल काले य । १०. दव्वे अद्ध- अहाउय, उवक्कमे तह य पमाणे वण्णे, भावे पगयं तु भावे || ११. सामाइयअणुकमओ, वण्णेउं विगयपोरिसीए ऊ । निज्जूढं किल सेज्जंभवेण दसकालियं तेणं ॥ + १२. 'जेण व जं व पडुच्चा जत्तो जावंति जन् य ते ठविया । सो तं च तओ ताणिय, तहा य कमसो कहेयव्वं ॥ दारं || १३. सेज्जंभवं गणधरं जिणपडिमादंसणेण पडिबुद्ध । मणगपियरं दसका लियस्स निज्जूहगं वंदे ॥ १. यह गाथा अचू और जिचू में व्याख्यात है किन्तु अचू की भूमिका में इस गाथा को निर्यक्तिगाथा के क्रम में नहीं माना है । ( अभूमिका पृ. ८) २. किड्डा मंदा (रा, हा) । ३. टीका में यह गाथा निर्युक्ति के क्रम में है किन्तु जिनदासचूर्णि में यह गाथा उद्धृत गाथा के रूप में उल्लिखित है यह गाथा मूलतः 'तंदुलवेयालिय' प्रकीर्णक (गा. ३१) की है किंतु बाद में यह नियुक्तिगाथा के रूप में लिपिकारों या टीकाकार द्वारा जोड़ दी गई है, ऐसा प्रतीत होता है । हमने इसे निगा के क्रम में नहीं रखा है। द्र. दश्रुनि ३, पंकभा २५२, निभा ३५४५, ठाणं १०।१५४ । ४. आवनि ६६० । ५. ० पोरसीए (अ), ०सीओ ( रा ) । Jain Education International निर्युक्तिपंचक ६. किर (हा ) । ७. यह गाथा अचू में संकेतित नहीं है किन्तु टीकाकार इस गाथा के लिए 'चाह निर्युक्तिकारः' लिखते हैं । इसके पूर्वापर संबंध को देखने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह गाथा अन्य आचार्यों द्वारा रची गई है क्योंकि इस गाथा की विषयवस्तु का ही पुनरावर्तन अगली गाथाओं में हुआ है । इस गाथा के बाद जिनदासकृत चूर्णि में 'इमाओ निरुत्तिगाहाओ चउरो अज्झष्पस्साणयणं, अहिगम्मन्ति व, जह दीवा", अहिं. इनका उल्लेख है लेकिन हस्तप्रतियों में ये गाथाएं आगे (गा २६, २७, २८, ३०) इस क्रम में मिलती हैं । ८. जेणेव जं च पडुच्च (जिचू) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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