SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण ११९ नियुक्ति से ठाणं में संक्रांत हुए हैं। जातक' में भी नियुक्ति की कुछ गाथाएं संक्रांत हुई हैं। उदाहरणार्थ उत्तराध्ययननियुक्ति (गा. २५७) की संवादी गाथा द्रष्टव्य है---- करकण्डु नाम कलिङ्गानं, गन्धारानञ्च नग्गजी। निमिराजा विदेहानं, पञ्चालानञ्च दुमुक्खो।।२ नियुक्तिकार अपने समकालिक एवं पूर्ववर्ती आचार्यों की रचना से भी प्रभावित हुए हैं। नियुक्ति में वर्णित वर्णान्तर जातियों का उल्लेख वैदिक धर्म ग्रंथों से लिया गया प्रतीत होता है। महाभारत, गौतमसूत्र एवं मनुस्मृति आदि ग्रंथों में इनका पूरा वर्णन मिलता है। दशवैकालिकनियुक्ति में वर्णित असंप्राप्त और संप्राप्त काम के भेद एवं वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित काम के अंगों में अद्भुत साम्य है। दशवैकालिकनियुक्ति में काव्य संबंधी वर्णन किसी काव्यशास्त्र के ग्रंथ से लिया गया है। नियुक्तिकार स्वयं भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि 'एव विहिण्णू कवी बेंति' अर्थात् विचक्षण कवियों ने ऐसा कहा है। आगम-संपादन का इतिहास महाराष्ट्र के मंचर गांव में पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी 'धर्मदूत' पत्र का अवलोकन कर रहे थे।उसमें बौद्ध ग्रंथों के संपादन एवं प्रकाशन की योजना थी। इस सूचना ने गुरुदेव के मन में टीस पैदा कर दी। उनके मन में विकल्प उठा कि जब बौद्ध आगमों का आधुनिक दृष्टि से संपादन हो सकता है तो फिर जैन आगमों का संपादन क्यों नहीं हो सकता? गुरुदेव के मन में एक संकल्प जागा कि आगमों की विशाल श्रुतराशि भी अच्छे ढंग से संपादित होकर जनता के समक्ष आनी चाहिए। गुरुदेव ने अपने मन की वेदना मुनि नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ) आदि संतों के सम्मुख प्रस्तुत की। संतों ने गुरुदेव की कल्पना एवं वेदना को समझा और एक स्वर में कहा कि हम आपकी इस भावना को पूरा करेंगे। तप-अनुष्ठान से उज्जैन चातुर्मास में जो आगम-कार्य प्रारंभ हुआ, वह आज तक अनवरत गति से चल रहा है। आगम-कार्य प्रारंभ करने से पूर्व आचार्य तुलसी ने तीन बातों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया—१. वर्तमान परिस्थितियों का संदर्भ २. .युगानुरूप साहित्यिक सौन्दर्य ३. आकर्षक शैली। इसके साथ-साथ तटस्थता, प्रामाणिकता, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन और समन्वय-नीतिइन पांच मापदंडों को भी संपादन का आधार बनाने की प्रेरणा दी। आचार्य तुलसी की आगम-संपादन कार्य के प्रति कितनी तड़प थी, इसे इस घटना से जाना जा सकता है। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी गुजरात प्रवास पर थे। वैशाख महीने की चिलचिलाती धूप में १२ मील का विहार कर गुरुदेव लगभग सवा दश बजे सांतलपुर पहुंचे। स्थान पर पहुंचते ही गुरुदेव ने कायोत्सर्ग किया। संतों ने सोचा आज संभवत: आगम-संशोधन का कार्य स्थगित रहेगा पर दोपहर को नियत समय होते ही आचार्य श्री ने संतों को याद किया और पाठ-संशोधन का कार्य प्रारंभ कर दिया ! गुरुदेव ने अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए कहा-“विहार चाहें कितना ही लम्बा क्यों न हो, आगम १. (क) कथा का वर्णन देखें दशनि गा. १६२-७९, ठाणं ४/२४६-५० । (ख) हेतु का वर्णन देखें दशनि गा, ४९-८५, ठाणं ४/४९९-५०४ । २. जातक ४०८/५ ३. दशनि १४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy